Book Title: Jain Sanskruti ka Rajmarg
Author(s): Ganeshlal Acharya, Shantichand Mehta
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ सर्वोदय-भावना का विस्तार भावना उत्पन्न होती है, अपनी ही स्वार्थपूर्ति की प्राकाक्षा सजग हो उठती है, तव समाज मे संघर्षपूर्ण विषमता पैदा होती है पौर वह सामाजिक प्रशान्ति का मूल कारण बन बैठती है। आज का संघर्ष भी पूंजीपतियो की बढती हुई धनलिप्सा एव अन्यायपूर्ण भावना ही है। सग्रह वृत्ति की राक्षसी मान्यता ने ही चोर-बाजार, रिश्वत प्रादि प्रमानुषिक प्रवृत्तियो को जन्म दिया है। अतः पूंजीपति जव तक अपनी संचय बुद्धि को त्याग कर अपने द्रव्य का प्रावश्यकतानुसार वितरण करने की ओर नहीं झुकेंगे, तब तक राष्ट्र और समाज मे विपमता का नाग होकर गान्ति की स्थापना होना दुष्कर है। जैसे शरीर अपने अगों मे विभेद न रखकर ही स्वस्थ रह सकता है, उसा प्रकार समाज की स्वस्थता भी परिग्रह का साम्यदृष्टि से वितरण करने में है। अब मैं समाज की वर्तमान वर्ण-व्यवस्था को पालोचना करते हुए बतलाना चाहूंगा कि समाज के विभिन्न प्रगो मे क्योकर भेद उत्पन्न कर दिया गया और इसके कारण किस प्रकार एक अग पोपण और दूसरा भग पोषण के प्रभाव मे विकृत हो चला ? इसके साथ यह भी बताऊंगा कि दर्ण-व्यवरथा की स्थापना कर और किस उद्देश्य को दृष्टिकोण मे रखकर ____ जैसे शरीर के चार प्रमुख अग होते है, उसी प्रकार समाज मे कर्तव्यो को प्टि मे रखकर चार वर्णो की स्थापना हुई। जो लोग सशक्त और युद्धकला में निपुण थे, उन्होने रक्षा का भार अपने ऊपर लिया और वे क्षत्रिय पलाये । जिन लोगो को अध्ययन और आध्यात्मिक क्षेत्र में अधिक रुचि थी, दे दाहाण कहलाये और उन्होंने समाज मे नीति द धर्म के प्रचार का बीड़ा उठाया। जिस समुदाय को शुद्र कहा जाता है, उसने अपनी सर्वोच्च द तीन सेवा भावना से समाज की नीची-से-नीची सेवा करने की इच्छा पाट की और समाज के हर तरह के काम के लिए उन्होने अपने आपको समर्पित कर दिया । किन्तु इन तीनो दर्गों के भरण-पोषण का सवाल उठ खड़ा हया। सभी समाज के अलग-अलग कामो को पूरा करेंगे, मगर खाना कहाँ

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123