Book Title: Jain Sanskruti ka Rajmarg
Author(s): Ganeshlal Acharya, Shantichand Mehta
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala Bikaner

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Page 41
________________ स्यावाद सत्य का साक्षात्कार सद्भाव सभव है, क्योकि उन गुणो को हम विभिन्न दृष्टियो से देख रहे हैं। उसी प्रकार एक ही वस्तु विभिन्न अपेक्षानो से नित्य भी हो सकती है तथा अनित्य भी। जब स्थूल सासारिक व्यवस्था भी सापेक्ष दृष्टि पर टिकी हुई है तो वस्तु के सूक्ष्म स्वरूप को हठ मे जकड़कर एकान्तिक बताना कभी सत्य नही हो सकता । यह ठीक वैसा ही होगा कि एक ही व्यक्ति को अगर पुत्र माना जाता है तो वह पिता कहला नहीं सकता और इसकी असत्यता प्रत्यक्षत सिद्ध है । चाहे तो यह सासारिक व्यवस्था ले लीजिए या सिद्धातो को स्वरुप विवेचना-सव सापेक्ष दृष्टि पर अवलम्बित है। अगर इस दृष्टि को न माना जायगा व सवन्धित सारे पक्षो के आधार पर वस्तु के स्वरूप को न समझा जायगा तो एक क्षण मे ही जागतिक व्यवस्था मिट सी जायगी। शाचर्य यही है कि स्थूल रूप से जिस सापेक्ष दृष्टि को अपने चारो ओर सासारिक व्यवहार मे वेचा जाता है, उसी सापेक्ष दृष्टि को वैचारिक सूक्ष्मता के क्षेत्र मे भुला दिया जाता है और फलस्वरूप व्यर्थ के विवाद उत्पन्न किये जाते है । एक क्षण के लिए सोचिये कि अगर एक व्यक्ति को 'एकान्त रूप से' पिता ही समझा जाय तो यह कथन कितना वेहूदा होगा कि वह पिता ही है यानी सबका पिता है, आपके पिता का भी पिता है। घत साफ है कि एकान्त दृष्टिकोण को सामने रखकर उसके सम्बन्धित अन्य दृष्टिकोणो को न समझने का हठ करना भी ठीक इसी तरह वेहूदा कहा जायगा । एकान्त दृष्टिकोण एक तरह से सत्य ज्ञान को विशृखलित करने वाला है। __ यहाँ यह शका की जा सकती है कि एक ही वस्तु मे दो विरोधी धर्म एक साथ कैसे रह सकते हैं ? शकराचार्य ने यह आपत्ति उठाई थी कि एक हा पदार्थ एक साथ नित्य और अनित्य नही हो सकता जैसे कि शीत और जण गुण एक साथ नही पाए जाते किन्तु शका ठीक नही है । विरोध की पका तो तव उठाई जा सकती है जबकि एक ही दृष्टिकोण-अपेक्षा से वस्तु को नित्य भी माना जाय और अनित्य भी। जिस दृष्टिकोण से वस्तु को ए माना गय, उसी दृष्टिकोण से यदि उसे अनित्य भी माना जाय तव

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