________________
३६
जैन-सस्कृति का राजमार्ग इस अनवरत संघर्षशील जगत् के बीच स्व-पर-कल्याण सम्पादित नहीं किया जा सकता । सक्षेप मे जैन-दर्शन विश्वशान्ति के साथ-साय व्यक्तिशान्ति का भी मार्ग प्रशस्त करता है।
तो मै यहाँ पर जैन दर्शन की मौलिक देन स्याद्वाद या अनेकान्तवाद पर कुछ विशेप रोशनी डालना चाहता हूँ। जिस प्रकार सत्य के साक्षात्कार मे हमारी अहिंसा स्वार्थ-सघर्षों को सुलझाती हुई आगे बढती है, उसी प्रकार यह स्याद्वाद जगत् के वैचारिक संघर्षों की अनोखी सुलझन प्रस्तुत करता है। श्राचार मे अहिंसा और विचार मे स्याद्वाद-यह जनदर्शन की सर्वोपरि मौलिकता कही है। स्याहाद को दूसरे शब्दो मे वाणी व विचार को अहिंसा के नाम से भी पुकारा जा सकता है।
स्यावाद जैनदर्शन के आधारभूत सिद्धान्तो मे से एक है। किसी भी वस्तु या तत्त्व के सत्य स्वरूप को समझने के लिए हमे इसी सिद्धान्त का आश्रय लेना होगा । एक ही वस्तु या तत्त्व को विभिन्न दृष्टिकोणो से देखा जा सकता है और इसलिए उसमे विभिन्न पक्ष भी हो जाते हैं। अतः उसके सारे पक्षो व दृष्टिकोणो को विभेद की नहीं, बल्कि समन्वय की दृष्टि से समझकर उसकी यथार्थ सत्यता का दर्शन करना इस सिद्धान्त के गहन चिन्तन के आधार पर ही सभव हो सकता है। आज के विज्ञान ने भी प्रव तो सिद्ध कर दिया है कि एक ही वस्तु की कई बाजुएं हो सकती हैं और उसमे भी ऐसी बाजुएँ अधिक होती हैं, जिनका स्वरूप अधिकतर प्रत्यक्ष न होकर अप्रत्यक्ष ही रहता है। अतः इन सारे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष पक्षो को समझने के बाद ही किसी भी वस्तु के सत्य स्वरूप का अनुभव किया जा सकता है। ___इसलिए यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी वस्तु-विशेष के एक ही पक्ष या दृष्टिकोण को उसका सर्वांग स्वरूप समझकर उसे सत्य के नाम से पुकारना मिथ्यावाद या दुराग्रह का कारण बन जाता है। विभिन्न पक्षी या दृष्टिलोगो के प्रकाश मे जब तक एक वस्तु का स्पष्ट विश्लेपण न कर लिया जाय, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि हमने उस वरतु का गर्वाग