Book Title: Jain Sanskruti ka Rajmarg
Author(s): Ganeshlal Acharya, Shantichand Mehta
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala Bikaner

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Page 37
________________ स्याद्वाद : सत्य का साक्षात्कार आज प्राप लोगो के बीच यूरोप सड मे स्थित हगरी देश के प्रमुख विद्वान् डॉ० फेलिक्स वैली भी उपस्थित हैं । वैसे ये बौद्धधर्म के विशेषज्ञ है किन्तु जैन दर्शन के प्रति भी इनका प्रति आकर्षण व प्रादर है और उसी प्रेरणा से ये प्राज जैन सिद्धान्तो की विशेष जानकारी के लिए यहाँ आये हुए है । जैनधर्म श्रात्म-विजेताओ का महान् धर्म है । जिन्होने रागद्वेष श्रादि अपने श्रान्तरिक विकारो पर विजय प्राप्त करके सयम एव साधना द्वारा निर्मल ज्ञान प्राप्त कर अपनी आत्मा को उत्थान के मार्ग पर अग्रसर किया है, उन्हे हमारे यहाँ 'जिन' (विजेता) कहा गया है तथा इन विजेताओ द्वारा प्रेरित दर्शन का नामाकन जैन दर्शन के नाम से हुना । प्रत. यह दर्शन किसी व्यक्ति विशेष, वर्ग विशेष या शास्त्र - विशेष की उपज नही, बल्कि इसका विकास उन ग्रात्मानो द्वारा हुधा है, जिन्होंने सारे सांसारिक ( जातीय, देशीय सामाजिक, वर्गीय प्रादि) भेदभावो व यहाँ तक कि स्वपर को भी विसर्जित कर प्रपने जीवन को सत्य के लिए होम दिया । यही कारण है कि इसका यह स्वरूप इसकी महान् प्राध्यात्मिकता व व्यापक विश्व बन्धुत्व वा प्रतीक है | जैनो का प्रधान साध्य सत्य का साक्षात्कार करना है, जिसके प्रकाश मे जीवन का कण-कण श्रालोकित होकर चरम विकास को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए जैनदर्जन के सभी सिद्धान्त साधन रूप वनकर उक्त साध्य की कोर गमनशील बनाते है । इसमे भौतिकवादी दृष्टिकोण को प्रमुखता न देकर प्राध्यामिकताको विशिष्ट महत्व दिया गया है, क्योकि समस्त प्राणी समूह की सेवा के लिए यह प्रनिवार्य है कि सासारिक प्रलोभोको छोटकर प्रात्मवृत्तियो का शुद्धिकरण किया जाय, जिसके विना

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