Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कर्मवाद
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है कि किस कर्म-प्रकृति के कितने प्रदेश होते हैं एवं उनका तुलनात्मक अनुपात क्या है । कर्मरूप से गृहीत पुद्गल-परमाणुओं के कर्मफल के काल एवं विपाक की तीव्रता-मन्दता का निश्चय आत्मा के अध्यवसाय अर्थात् कषाय की तीव्रता-मन्दता के अनुसार होता है। कर्मविपाक के काल तथा तीव्रता-मन्दता के इस निश्चय को क्रमशः स्थिति बन्ध तथा अनुभाग-बन्ध कहते हैं। कषाय के अभाव में कर्मपरमाणु आत्मा के साथ सम्बद्ध नहीं रह सकते । जिस प्रकार सूखे वस्त्र पर रज अच्छी तरह न चिपकते हुए उसका स्पर्श कर अलग हो जाती है उसी प्रकार आत्मा में कषाय की आर्द्रता न होने पर कर्म-परमाणु उससे सम्बद्ध न होते हुए केवल उसका स्पर्श कर अलग हो जाते हैं। ईर्यापथ ( चलना-फिरना आदि आवश्यक क्रियाएँ ) से होनेवाला इस प्रकार का निर्बल कर्मबन्ध असांपरायिक बन्ध कहलाता है । सकषाय कर्म-बन्ध को सांपरायिक बन्ध कहते हैं । असांपरायिक बन्ध भव-भ्रमण का कारण नहीं होता। साम्परायिक बन्ध से ही प्राणी को संसार में परिभ्रमण करना पड़ता है। कर्म का उदय और क्षय :
कर्म बँधते ही अपना फल देना प्रारम्भ नहीं कर देते । कुछ समय तक वैसे ही पड़े रहते हैं। कर्म के इस फलहीन काल को जैन परिभाषा में अबाधाकाल कहते हैं अबाधाकाल के व्यतीत होने पर ही बद्धकर्म अपना फल देना प्रारम्भ करते हैं । कर्मफल का प्रारम्भ ही कर्म का उदय कहलाता है । कर्म अपने स्थितिबन्ध के अनुसार उदय में आते हैं एवं फल प्रदान कर आत्मा से अलग हो जाते हैं । इसी का नाम निर्जरा है । जिस कर्म की जितनी स्थिति का बन्ध होता है वह कर्म उतनी ही अवधि तक क्रमशः उदय में आता है । दूसरे शब्दों में कर्मनिर्जरा का भी उतना ही काल होता है जितना कर्म-स्थिति का। जब आत्मा से सभी कर्म अलग हो जाते हैं तब प्राणी कर्म-मुक्त हो जाता है । इसी को मोक्ष कहते हैं। कर्मप्रकृति अर्थात् कर्मफल :
जैन कर्मशास्त्र में कर्म की आठ मूल प्रकृतियाँ मानी गई हैं। ये प्रकृतियाँ प्राणी को विभिन्न प्रकार के अनुकूल एवं प्रतिकूल फल प्रदान करती हैं । इन प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं : १. ज्ञानावरण, २. दर्शनावरण, ३, वेदनीय, ४. मोहनीय, ५. आयु, ६. नाम, ७. गोत्र, और ८. अन्तराय । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय-ये चार घाती प्रकृतियाँ हैं क्योंकि इनसे
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