Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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तृतीय प्रकरण कर्मप्राभृत की व्याख्याएँ
वीरसेनाचार्यविरचित धवला टोका कर्मप्राभृत ( षट्खण्डागम ) की अतिमहत्त्वपूर्ण बृहत्काय व्याख्या है। धवला से पूर्व रची गई कर्मप्राभृत की टीकाओं का उल्लेख इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार में मिलता है। ये टीकाएँ वर्तमान में अनुपलब्ध हैं । इनका यत्किचित् परिचय देने के बाद उपलब्ध धवला का विस्तार से परिचय दिया जायगा।
कुन्दकुन्दकृत परिकर्म :
उपर्युक्त श्रुतावतार में उल्लेख है कि कर्मप्राभृत और कषायप्राभृत का ज्ञान गुरुपरम्परा से कुन्दकुन्दपुर के पद्मनन्दिमुनि अर्थात् कुन्दकुन्दाचार्य को प्राप्त हुआ। उन्होंने कर्मप्राभूत के छः खण्डों में से प्रथम तीन खण्डों पर परिकर्म नामक बारह हजार श्लोकप्रमाण एक टीकाग्रन्थ लिखा। धवला में इस ग्रन्थ का अनेक बार उल्लेख हुआ है । यह टीकाग्रन्थ प्राकृत में था ।
शामकुण्डकृत पद्धति :
आचार्य शामकुण्डकृत पद्धति नामक टीका कर्मप्राभृत के प्रथम पाँच खण्डों पर थी। कषायप्राभूत पर भी इन्हीं आचार्य की इसी नाम की टीका थी। इन दोनों टीकाओं का परिमाण बारह हजार श्लोक था। इनकी भाषा प्राकृत-संस्कृतकन्नड़मिश्रित थी। ये परिकर्म से बहुत बाद लिखी गईं। इन टीकाओं का कोई उल्लेख धवला आदि में नहीं मिलता।
तुम्बुलूरकृत चूडामणि व पंजिका :
तुम्बुलूराचार्य ने भी कर्मप्राभृत के प्रथम पाँच खण्डों तथा कषायप्राभृत पर एक टीका लिखी। इस बहत्काय टीका का नाम चूडामणि था । चूडामणि चौरासी हजार श्लोकप्रमाण थी। इसकी भाषा कन्नड़ थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने कर्मप्राभूत के छठे खण्ड पर प्राकृत में पंजिका नामक व्याख्या लिखी
१. षट्खण्डागम, पुस्तक १, प्रस्तावना, पृ० ४६-५३.
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