Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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योग और अध्यात्म
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२८, ८१, १६, २४, ६१ और ५५ है। इस प्रकार इसमें कुल ११९९ श्लोक हैं।
प्रका० १२, श्लो० ५५ तथा प्रका० १ श्लो० ४ को स्वोपज्ञ वृत्ति के अनुसार प्रस्तुत कृति योगोपासना के अभिलाषी कुमारपाल की अभ्यर्थना का परिणाम है। शास्त्र, सद्गुरु की वाणी और स्वानुभव के आधार पर इस योगशास्त्र की रचना की गई है। मोहराजपराजय ( अंक ५) में निर्दिष्ट सूचना के अनुसार मुमुक्षुओं के लिये यह कृति वज्रकवच के समान है । वीतरागस्तोत्र के बीस प्रकाशों के साथ इस कृति के बारह प्रकाशों का पाठ परमार्हत कुमारपाल अपनी दन्तशुद्धि के लिये करता था, ऐसा कहा जाता है।
विषय-प्रकाश १, श्लो० १५ में कहा है कि चार पुरुषार्थों में श्रेष्ठ मोक्ष का कारण ज्ञान, दर्शन एवं चारित्ररूप 'योग' है। इसका निरूपण ही इस योगशास्त्र का मुख्य विषय है । प्रका० १, श्लो० १८-४६ में श्रमणधर्म का स्वरूप बतलाया है । इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ का अधिकांश भाग गृहस्थधर्म से सम्बद्ध है । इसके २८२ पद्य हैं।
( E Windisch) ने प्रारम्भ के चार प्रकाशों का सम्पादन किया है उन्होंने इसका जर्मन भाषा में अनुवाद भी किया है। इस अनुवाद के साथ प्रकाश १-४ Z. D. M. G. ( Vol. 28, p. 185 ff. ) में छपे हैं। श्री महावीर जैन विद्यालय ने ( प्रकाश १-४ ) गुजराती अनुवाद तथा दृष्टान्तों के सार के साथ इसकी दूसरी आवृत्ति सन् १९४९ में प्रकाशित की है । इसको प्रथम आवृत्ति सन् १९४१ में उसने छापी थी। उसके सम्पादक तथा मूल के अनुवादक श्रो खुशालदास हैं। इसमें हेमचन्द्रसूरि को जीवनरेखा, उनके ग्रन्थ, योग से सम्बद्ध कुछ अन्य जानकारी, तीन परिशिष्ट, पद्यानुक्रम, विषयानुक्रम, विशिष्ट शब्दों की सूची इस प्रकार विविध विषयों का समावेश किया गया है । इसमें कहा है कि प्रका० २ का श्लो॰ ३९ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका ( श्लो० ११ ) की स्याद्वादमंजरी में आता है । इसके बारहों प्रकाशों का छायानुवाद दस प्रकरणों में श्री गोपालदास पटेल ने किया है। उपोद्घात, विषयानुक्रमणिका, टिप्पण, पारिभाषिक शब्द आदि सूचियों, सुभाषितात्मक मूल श्लोक और उनके अनुवाद के साथ यह ग्रन्थ 'पूजाभाई जैन ग्रन्थमाला' में 'योगशास्त्र' के नाम से सन् १९३८ में प्रकाशित हुआ है।
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