Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास टोका-इस पर देवचन्द्र ने वि. सं. ११६० में १३,००० श्लोक-परिमाण एक टीका लिखी है। ये कर्ता के प्रशिष्य थे। इन्होंने शान्तिनाथचरित्र लिखा है। आराहणा ( आराधना ) :
इसे भगवई आराहणा ( भगवती आराधना) तथा मूलाराहणा ( मूलाराधना)' भी कहते हैं। इसमें २१६६ पद्य जैन शौरसेनी में हैं। यह आठ. परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप - इन चार आराधनाओं का निरूपण है। यह ग्रन्थ मुख्यतया मुनिधर्म का प्रतिपादन करता है और समाधिमरण का स्वरूप समझाता है। विस्तार से कहना हो तो प्रस्तुत कृति में निम्नलिखित बातों का आलेखन हुआ है :
सम्यक्त्व की महिमा, तप का स्वरूप, मरण के सत्रह प्रकारों का उल्लेख, इनमें से पण्डित-पण्डित मरण, पण्डित-मरण, बाल-पण्डितमरण, बाल-मरण और बाल-बालमरण-इन पाँचों के नाम और इनके स्वामियों का उल्लेख, सूत्रकार के चार प्रकार, सम्यक्त्व के आठ अतिचार, सम्यक्त्व की आराधना का फल, स्वामी आदि, आराधना का स्वरूप, मिथ्यात्व के विषय में विचारणा, पण्डित-मरण का निरूपण, भक्तपरिज्ञा-मरण के प्रकार तथा सविचारभक्त-प्रत्याज्यान ।
सविचारभक्तप्रत्याख्यान का निरूपण अधोलिखित चालीस अधिकारों में किया गया है :
१. तीर्थकर, २. लिंग, ३. शिक्षा, ४. विनय, ५. समाधि, ६. अनियत विहार, ७. परिणाम, ८. उपाधित्याग, ९. द्रव्य-श्रिति और भावश्रिति, १०. भावना, ११. सल्लेखना, १२. दिशा, १३. क्षमण, १४. अनुविशिष्ट शिक्षा, १५. परगणचर्या, १६. मार्गणा, १७. सुस्थित, १८. उपसम्पदा, १९. परीक्षा, २०. प्रतिलेखन, २१. आपृच्छा, २२. प्रतिच्छन्न, २३. आलोचना, २४. आलो
१. यह ग्रन्थ सदासुख की हिन्दी टीका के साथ शक संवत् १८३१ में कोल्हा
पुर से प्रकाशित हुआ है। इसके पश्चात् मूल ग्रन्थ की सदासुख काशलीवाल-कृत हिन्दी वचनिकासहित दूसरी आवृत्ति 'अनन्तवीर्य दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला' में पं० नाथूरामजी प्रेमी की विस्तृत भूमिका के साथ वि० सं० १९८९ में प्रकाशित हुई है। इसमें २१६६ गाथाएँ हैं। इनमें कई अवतरणों का भी समावेश होता है।
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