Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थ
३११ भैरव-पद्मावतीकल्प :
जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण ने इसकी रचना की है। ये जिनसेन कनकसेनगणो के शिष्य और अजितसेनगणी के प्रशिष्य थे। इस आधार से मल्लिषेण की गुरु-परम्परा इस प्रकार बताई जा सकती है
अजितसेनगणी
कनकसेनगणी
जिनसेन
मल्लिषण प्रस्तुत मल्लिषेण दिगम्बर हैं । इन्होंने इस भैरव-पद्मावतीकल्प के अतिरिक्त ज्वालिनीकल्प, नागकुमारचरित्र अर्थात् श्रुतपंचमीकथा, महापुराण' और सरस्वतीमंत्रकल्प नामक ग्रन्थ भी लिखे हैं। प्रस्तुत कृति के ३३१ पद्य दस अधिकारों में विभक्त हैं ।३ श्री नवाब द्वारा प्रकाशित पुस्तक में ३२८ पद्य हैं । इसमें अन्य प्रकाशन में 'वनारुणासितैः' से शुरू होनेवाला तीसरे अधिकार का तेरहवां पद्य, 'स्तम्भने तु' से शुरू होनेवाला चौथे अधिकार का श्रीरंजिका यंत्र-विषयक बाईसा पद्य तथा "सिन्दूरारुण" से शुरू होनेवाला इकतीसा पद्य इस प्रकार कुल तीन पद्य नहीं हैं ।
प्रथम अधिकार के चौथे पद्य में दसों अधिकारों के नाम दिये गये हैं जो इस प्रकार हैं : १. साधक का लक्षण, २. सकलीकरण की क्रिया, ३. देवी के पूजन
१. यह कृति बन्धुसेन के विवरण तथा गुजराती अनुवाद, ४४ यंत्र, ३१
परिशिष्ट एवं आठ तिरंगे चित्रों के साथ साराभाई नवाब ने सन् १९३७ में प्रकाशित की है। इसके अतिरिक्त पं. चन्द्रशेखर शास्त्रीकृत हिन्दी भाषा-टीका, ४६ यंत्र एवं पद्मावती-विषयक कई रचनाओं के साथ यह श्री मूलचन्द किसनदास कापड़िया ने वीर-संवत् २४७९ में प्रकाशित
की है। २. इसे त्रिषष्टिमहापुराण तथा त्रिषष्टिशलाकापुराण भी कहते हैं । इसका
रचनाकाल वि. सं. ११९४ है । ३. दसवें अधिकार के ५६ वें पद्य में प्रस्तुत कृति ४०० श्लोक की होने
का तथा सरस्वती ने कर्ता को वरदान दिया था इस बात का उल्लेख है।
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