Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थं
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से लेकर महावीरस्वामो तक के चौबीस तीर्थंकरों का संकीर्तन है । यह श्वेताम्बरों के 'लोगस्त सुत्त' के साथ मिलती-जुलती है ।
८. निव्वाणभत्ति ( निर्वाणभक्ति ) – इसमें २७ पद्य हैं। इसमें ऋषभ आदि चौबीस तीर्थकर, बलभद्र और कई मुनियों के नाम देकर उनकी निर्वाण-भूमि का उल्लेख किया गया है । इस प्रकार यह भौगोलिक दृष्टि से तथा पौराणिक मान्यता की अपेक्षा से महत्त्व की कृति है ।
टीका - उपर्युक्त आठ भक्तियों में से प्रथम पाँच पर प्रभाचन्द्र की क्रियाकलाप नाम की टीका है । इन पांचों के अनुरूप संस्कृत भक्तियों पर तथा निर्वाणभक्ति एवं नन्दीश्वरभक्ति पर भी इनकी टीका है । इतर भक्तियों के कर्ता कुन्दकुन्दाचार्य हैं अथवा अन्य कोई, इसका निर्णय करना अवशिष्ट है । यही बात दूसरी संस्कृत भक्तियों पर भी लागू होती है ।
दशभक्त्यादिसंग्रह में निम्नलिखित बारह भक्तियाँ प्राकृत कण्डिका एवं क्षेपक श्लोक सहित या रहित तथा अन्वय, हिन्दी अन्वयार्थ और भावार्थ के साथ देखी जाती हैं - सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगिभक्ति, आचार्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति, तोर्थंकरभक्ति, शान्तिभक्ति, समाधिभक्ति, निर्वाणभक्ति, नन्दीश्वरभक्ति और चैत्यभक्ति । इनके पद्यों की संख्या क्रमशः १० ( ९ + १ ), ३० १०, ८, ११, ११, ५, १५, १८, ३०, ६० और ३५ है |
१. सिद्धभक्ति - इसमें सिद्ध के गुण, सुख, अवगाहना आदि बातें आती हैं । साथ ही, जैन दृष्टि से मुक्ति और आत्मा का स्वरूप भी बतलाया है ।
२. श्रुतभक्ति -- इसमें पाँच ज्ञान की स्तुति की गई है । केवलज्ञान को छोड़कर शेष ज्ञानों के भेद-प्रभेद एवं दृष्टिवाद के पूर्व आदि विभागों का निरूपण है ।
३. चारित्रभक्ति - इसमें ज्ञानाचार आदि पाँच 'आचारों की स्पष्टता की गई है।
४. योगिभक्ति - इसमें मुनियों के वनवास एवं विविध ऋतुओं में परीषहों के सहन की बातों का वर्णन है ।
१. इन आठों भक्तियों का सारांश अंग्रेजी में प्रवचनसार की प्रस्तावना ( पृ० २६-२८ ) में डा० उपाध्ये ने दिया है ।
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