Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बहद इतिहास
चार विवरण -- प्रस्तुत कृति पर तीन टीकाएँ और एक वृत्ति इस प्रकार कुल चार विवरण लिखे गये हैं । टीकाकारों के नाम अनुक्रम से प्रभाचन्द्र, धर्म और यशश्चन्द्र हैं । वृत्तिकार का नाम मेघचन्द्र है ।
पर्वत
२५८
प्रस्तुत कृति सब धर्मों के अनुयायियों के लिये और विशेषतः जैनों के लिये उपयोगी होने से न्यायाचार्य श्री यशोविजयजी' ने इसके उद्धरणरूप १०४ दोहों में गुजराती में 'समाधिशतक' नामक ग्रन्थ लिखा है ।
समाधिद्वात्रिंशिका :
यह अज्ञातकर्तृक कृति है । इसमें बत्तीस पद्य हैं ।
· समताकुलक :
यह भी अज्ञातकर्तृक कृति है । यह संभवतः प्राकृत में हैं । साम्यशतक :
यह विजयसिंहसूर की १०६ श्लोकों में रचित कृति है । ये 'चन्द्र' कुल के अभयदेवसूरि के शिष्य थे ।
जिनरत्नकोश ( वि० १, पृ० ३२१-२२ ) में 'योग' शब्द से प्रारम्भ होनेवाली कुछ कृतियों का निर्देश है । उनमें से निम्नलिखित कृतियों के रचयिताओं के नाम नहीं दिये गये हैं । अतः यथेष्ठ साधनों के अभाव में उन नामों का निर्धारण करना शक्य नहीं है । इन कृतियों के नाम इस प्रकार हैं :
योगदृष्टिस्वाध्यायसूत्र, योगभक्ति, योगमाहात्म्यद्वात्रिंशिका, योगरत्नसमुच्चय", योगरत्नावली, योगविवेकद्वात्रिंशिका, योगसंकथा, योगसंग्रह, योगसंग्रहसार, योगानुशासन और योगावतारद्वात्रिंशिका ।
१. इन्होंने वैराग्यकल्पलता ( स्तबक १, श्लो० १२७ से २५९ ) में समाधि का विस्तृत निरूपण किया है। हिन्दी में भी १०५ दोहों में इन्होंने समताशतक अथवा साम्यशतक लिखा है ।
२. इसका परिचय यशोदोहन ( पृ० २९५ - ९७ ) में दिया है ।
३. यह पुस्तक ए० एम० एण्ड कम्पनी ने बम्बई से सन् १९१८ में प्रकाशित
की है ।
४. इसमें योग का प्रभाव ३२ या उससे एकाध अधिक पद्यों में बतलाया
होगा ।
५. इसका श्लोक - परिमाण ४५० है ।
६. यह ग्रन्थ १५०० श्लोक - परिमाण है ।
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