Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद इतिहास
प्रथम परिच्छेद में मोक्ष और मोक्षमार्ग, द्वितीय में द्रव्यसामान्य का लक्षण, तृतीय में द्रव्यविशेष और चतुर्थ में जीवादि सात तत्त्वों एवं नौ पदार्थों का निरूपण है ।
अध्यात्मतरंगिणी :
२६४
इसके रचयिता दिगम्बर सोमदेव हैं ।
अध्यात्माष्टक :
इसकी रचना वादिराज ने की है । अध्यात्मगीता :
यह खरतरगच्छ के देवचन्द्र ने गुजराती में दीपचन्द्र के शिष्य और ध्यानदीपिका के प्रणेता हैं। को प्रणाम करके इस ग्रन्थ में आत्मा का सातों नयों के है । आत्मा के स्वभाव, परभाव, सिद्धावस्था आदि बातों का भी इस लघु कृति में निरूपण किया गया है । विषय गहन है ।
४९ पद्यों में लिखी है । ये जिनवाणी और जिनागम अनुसार निरूपण किया
जिनरत्नकोश ( वि० १, पृ० ५-६ ) में अध्यात्म से शुरु होने वाली विविध कृतियों का उल्लेख है जो इस प्रकार हैं : अध्यात्मभेद, अध्यात्मकलिका, अध्यात्मपरीक्षा, अध्यात्मप्रदीप, अध्यात्मप्रबोध, अध्यात्मलिंग और अध्यात्मसारोद्धार ।
इनमें से किसी के भी कर्ता का नाम जिनरत्नकोश में नहीं दिया है, अतः ये सब अज्ञातकर्तृक ही कही जा सकती हैं ।
गुणस्थानकमारोह, गुणस्थानक अथवा गुणस्थानरत्न राशि :
इसकी रचना रत्नशेखरसूरि ने वि० सं० १४४७ में की है । ये वज्रसेनसूरि
१- २. 'माणिकचंद्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला' के ग्रन्थांक १३ के रूप में वि० सं० १९७५ में ये प्रकाशित हुए हैं ।
३. यह श्रीमद् देवचन्द्र ( भा० २ ) के पृ० १८८- ९५ में प्रकाशित हुई है । ४. यह कृति स्वोपज्ञ वृत्ति के साथ 'देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था '
ने सन् १९१६ में प्रकाशित की थी । मूल कृति और उसके गुजराती भावानुवाद को साराभाई जेसिंगभाई द्वारा वि० सं० २०१३ में प्रकाशित 'श्री स्वाध्यायसन्दोह' में स्थान मिला है । 'जैनधर्म प्रसारक सभा' ने
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