Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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योग और अध्यात्म
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के शिष्य थे । प्रस्तुत कृति में निम्नलिखित १४ गुणस्थानों का निरूपण आता है। १. मिथ्यादृष्टि, २. सास्वादन, ३. मिश्र ( सम्यक्-मिथ्यादृष्टि), ४. अविरत, ५. देशविरत, ६. प्रमत्तसंयत, ७. अप्रमत्त, ८. अपूर्वकरण, ९. अनिवृत्तिबादरसम्पराय, १०. सूक्ष्मसम्पराय, ११. उपशान्तमोह, १२. क्षीणमोह, १३. सयोगीकेवली और १४. अयोगी केवली ।
स्वोपज्ञवृत्ति-इसमें ( पत्र ३७-३८) ध्यानदण्डकस्तुति में से दो उद्धरण दिये हैं तथा चर्परिन् की किसी कृति में से पाँच उद्धरण दिये हैं (पत्र ४०-४१)।
अवचूरि-यह अज्ञातकर्तक है।
बालावबोध-यह श्रीसार ने लिखा है । गुणस्थानकनिरूपण :
इसके कर्ता हर्षवर्धन हैं । ‘गुणस्थानस्वरूप' इसी कृति का अपर नाम प्रतीत होता है। गुणस्थानक्रमारोह:
इस नाम की एक कृति जैसे रत्नशेखरसरि ने रची है वैसे ही दूसरी कृति २००० श्लोक-परिमाण विमलसूरि ने तथा तीसरी जयशेखरसूरि ने रची है । गुणस्थानद्वार:
इसके कर्ता का नाम अज्ञात है। गुणट्ठाणकमारोह (गुणस्थानक्रमारोह ) :
इसे जिनभद्रसूरि ने रचकर 'लोकनाल' नाम की वृत्ति से विभूषित किया है। गुणट्ठाणसय (गुणस्थानशत ):
यह देवचन्द्र ने १०७ पद्यों में लिखी है । गुणट्ठाणमग्गणट्ठाण (गुणस्थानमार्गणास्थान ):
यह नेमिचन्द्र की रचना है ।
मूल कृति तथा स्वोपज्ञ वृत्ति के अनुवाद के साथ वि० सं० १९८९ में यह प्रकाशित किया है। इसके अतिरिक्त मूल कृति हिन्दी श्लोकार्थ और हिन्दी व्याख्यार्थ के साथ 'श्री आत्म-तिलक ग्रंथ सोसायटी' की ओर से वि० सं० १९७५ में प्रकाशित हुई है।
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