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________________ योग और अध्यात्म २६५ के शिष्य थे । प्रस्तुत कृति में निम्नलिखित १४ गुणस्थानों का निरूपण आता है। १. मिथ्यादृष्टि, २. सास्वादन, ३. मिश्र ( सम्यक्-मिथ्यादृष्टि), ४. अविरत, ५. देशविरत, ६. प्रमत्तसंयत, ७. अप्रमत्त, ८. अपूर्वकरण, ९. अनिवृत्तिबादरसम्पराय, १०. सूक्ष्मसम्पराय, ११. उपशान्तमोह, १२. क्षीणमोह, १३. सयोगीकेवली और १४. अयोगी केवली । स्वोपज्ञवृत्ति-इसमें ( पत्र ३७-३८) ध्यानदण्डकस्तुति में से दो उद्धरण दिये हैं तथा चर्परिन् की किसी कृति में से पाँच उद्धरण दिये हैं (पत्र ४०-४१)। अवचूरि-यह अज्ञातकर्तक है। बालावबोध-यह श्रीसार ने लिखा है । गुणस्थानकनिरूपण : इसके कर्ता हर्षवर्धन हैं । ‘गुणस्थानस्वरूप' इसी कृति का अपर नाम प्रतीत होता है। गुणस्थानक्रमारोह: इस नाम की एक कृति जैसे रत्नशेखरसरि ने रची है वैसे ही दूसरी कृति २००० श्लोक-परिमाण विमलसूरि ने तथा तीसरी जयशेखरसूरि ने रची है । गुणस्थानद्वार: इसके कर्ता का नाम अज्ञात है। गुणट्ठाणकमारोह (गुणस्थानक्रमारोह ) : इसे जिनभद्रसूरि ने रचकर 'लोकनाल' नाम की वृत्ति से विभूषित किया है। गुणट्ठाणसय (गुणस्थानशत ): यह देवचन्द्र ने १०७ पद्यों में लिखी है । गुणट्ठाणमग्गणट्ठाण (गुणस्थानमार्गणास्थान ): यह नेमिचन्द्र की रचना है । मूल कृति तथा स्वोपज्ञ वृत्ति के अनुवाद के साथ वि० सं० १९८९ में यह प्रकाशित किया है। इसके अतिरिक्त मूल कृति हिन्दी श्लोकार्थ और हिन्दी व्याख्यार्थ के साथ 'श्री आत्म-तिलक ग्रंथ सोसायटी' की ओर से वि० सं० १९७५ में प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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