Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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अन्य कर्मसाहित्य
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भावप्रकरण :
विजयविमलगणि ने वि० सं० १६२३ में भावप्रकरण' की रचना की। इसमें ३० गाथाएँ हैं जिनमें औपशमिकादि भावों का वर्णन है। इस पर ३२५ श्लोकप्रमाण स्वोपज्ञ वृत्ति है। बन्धहेतूदयत्रिभंगी :
हर्पकुलगणिकृत बन्धहेतूदयत्रिभंगी में ६५ गाथाएं हैं। यह विक्रम की १६ वीं सदी की रचना है। इस पर वानरर्षि ने वि० सं० १६०२ में टीका लिखी है । यह टीका ११५० श्लोकप्रमाण है। dबन्धोदयसत्ताप्रकरण :
विजयविमलगणि ने विक्रम की १७ वीं सदी के प्रारम्भ में बन्धोदयसत्ताप्रकरण को रचना की। इसमें २४ गाथाएं हैं। इस पर ३०० श्लोकप्रमाण स्वोपज्ञ अवचूरि है।
दिगम्बरीय कर्मसाहित्य में महाकर्मप्रकृतिप्राभूत एवं कषायप्राभूत के बाद गोम्मटसार का स्थान है। यह नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की कृति है। नेमिचन्द्रकृत गोम्मटसार :
गोम्मटसार के कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती विक्रम की ११ वीं शताब्दी में विद्यमान थे। ये चामुण्डराय के समकालीन थे। चामुण्डराय गोम्मटराय
१. स्वोपज्ञ वृत्तिसहित-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९६८. २. टीकासहित-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९७४. ३. अवचूरिसहित-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९७४. ४. (अ) प्रथम काण्ड पर अभयचन्द्रकृत टीका एवं द्वितीय काण्ड पर केशव
__ वर्गीकृत टीका के साथ-हरिभाई देवकरण ग्रन्थमाला, कलकत्ता,
सन् १९२१. (आ) अंग्रेजी अनुवाद आदि के साथ-अजिताश्रम, लखनऊ, सन् १९२७
१९३७. (इ) हिन्दी अनुवाद आदि के साथ-परमश्रुत प्रभावक मंडल, बम्बई,
सन् १९२७-१९२८. (ई) टोडरमल्लकृत हिन्दी टीका के साथ-भारतीय जैन सिद्धान्त प्रका
शनी संस्था, कलकत्ता.
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