Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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धर्मोपदेश
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निषेध, काल की करालता, परीषह एवं दुःखों का सहन करना, गुरु की कठोर वाणी को आदरणीयता, आत्मा का स्वरूप इत्यादि बातें आती हैं। इसमें मुक्ति की साधना के लिये उपदेश दिया गया है। २६९ वा श्लोक श्लेषात्मक है। इसके द्वारा कर्ता ने अपना और अपने गुरु का नाम सूचित किया है। ____टीका-इसपर प्रभाचन्द्र ने एक टोका लिखी है। इसी को आत्मानुशासन-तिलक कहते हैं या अन्य किसी को, यह विचारणीय है। इस मूल कृति पर पं० टोडरमल ने तथा पं० वंशीधर शास्त्री ने एक-एक भाषा-टीका लिखी है। धर्मसार:
यह हरिभद्रसूरि की कृति है। कृति का उल्लेख पंचसंग्रह (गा. ८) की टीका ( पत्र ११ आ) में मलयगिरिसूरि ने किया है, परन्तु यह अभी तक तो अप्राप्य ही है।
टीका-प्रस्तुत कृति पर मलयगिरिसूरि ने एक टीका लिखी है, किन्तु वह भी मूल की भांति अप्राप्य है । इस टीका का उल्लेख मलयगिरि ने धर्मसंग्रहणी में किया है। धर्मबिन्दु : ____ यह हरिभद्रसूरि की आठ अध्यायों में विभक्त कृति है। इन अध्यायों में अल्पाधिक सूत्र हैं। इनकी कुल संख्या ५४२ है । यह कृति गृहस्थ एवं श्रमणों के सामान्य तथा विशेष धर्मों पर प्रकाश डालती है। इसमें अधोलिखित अध्याय हैं : १. गृहस्थसामान्यधर्म, २. गृहस्थदेशनाविधि, ३. गृहस्थविशेषदेशनाविधि, ४. यतिसामान्यदेशनाविधि, ५. यतिधर्मदेशनाविधि, ६. यतिधर्मविशेषदेशनाविधि, ७. धर्मफलदेशनाविधि, ८. धर्मफलविशेषदेशनाविधि ।
१. श्री जगमन्दरलाल जैनी ने इसका अंग्रेजी में भी अनुवाद किया है। २. यह मुनिचन्द्रसूरि की टीका के साथ जैन आत्मानन्द सभा ने वि० सं०
१९६७ में प्रकाशित किया है। इसका गुजराती अनुवाद सन् १९२२ में छपा है। इसके अतिरिक्त मुनिचन्द्रसूरि की टीकासहित मूल कृति का अमृतलाल मोदी-कृत हिन्दी अनुवाद 'हिन्दी जैन साहित्य प्रचारक मण्डल', अहमदाबाद ने सन् १९५१ में प्रकाशित किया है।
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