SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य कर्मसाहित्य १३३ भावप्रकरण : विजयविमलगणि ने वि० सं० १६२३ में भावप्रकरण' की रचना की। इसमें ३० गाथाएँ हैं जिनमें औपशमिकादि भावों का वर्णन है। इस पर ३२५ श्लोकप्रमाण स्वोपज्ञ वृत्ति है। बन्धहेतूदयत्रिभंगी : हर्पकुलगणिकृत बन्धहेतूदयत्रिभंगी में ६५ गाथाएं हैं। यह विक्रम की १६ वीं सदी की रचना है। इस पर वानरर्षि ने वि० सं० १६०२ में टीका लिखी है । यह टीका ११५० श्लोकप्रमाण है। dबन्धोदयसत्ताप्रकरण : विजयविमलगणि ने विक्रम की १७ वीं सदी के प्रारम्भ में बन्धोदयसत्ताप्रकरण को रचना की। इसमें २४ गाथाएं हैं। इस पर ३०० श्लोकप्रमाण स्वोपज्ञ अवचूरि है। दिगम्बरीय कर्मसाहित्य में महाकर्मप्रकृतिप्राभूत एवं कषायप्राभूत के बाद गोम्मटसार का स्थान है। यह नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की कृति है। नेमिचन्द्रकृत गोम्मटसार : गोम्मटसार के कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती विक्रम की ११ वीं शताब्दी में विद्यमान थे। ये चामुण्डराय के समकालीन थे। चामुण्डराय गोम्मटराय १. स्वोपज्ञ वृत्तिसहित-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९६८. २. टीकासहित-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९७४. ३. अवचूरिसहित-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९७४. ४. (अ) प्रथम काण्ड पर अभयचन्द्रकृत टीका एवं द्वितीय काण्ड पर केशव __ वर्गीकृत टीका के साथ-हरिभाई देवकरण ग्रन्थमाला, कलकत्ता, सन् १९२१. (आ) अंग्रेजी अनुवाद आदि के साथ-अजिताश्रम, लखनऊ, सन् १९२७ १९३७. (इ) हिन्दी अनुवाद आदि के साथ-परमश्रुत प्रभावक मंडल, बम्बई, सन् १९२७-१९२८. (ई) टोडरमल्लकृत हिन्दी टीका के साथ-भारतीय जैन सिद्धान्त प्रका शनी संस्था, कलकत्ता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy