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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
भी कहलाते थे क्योंकि उन्होंने श्रवणबेलगुल को प्रख्यात बाहुबली गोम्मटेश्वर की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। नेमिचन्द्र सिद्धान्तशास्त्र के विशिष्ट विद्वान् थेप्रकाण्ड पंडित थे अतएव वे सिद्धान्तचक्रवर्ती कहलाते थे। गोम्मटसार के अतिरिक्त निम्नलिखित कृतियाँ भी नेमिचन्द्र की ही हैं : लब्धिसार, क्षपणासार ( लब्धिसारान्तर्गत ), त्रिलोकसार और द्रव्यसंग्रह । ये सब ग्रंथ धवलादि महासिद्धान्तग्रन्थों के आधार से बनाये गये हैं।
गोम्मटसार की रचना चामुण्डराय जिनका कि दूसरा नाम गोम्मटराय था, के प्रश्न के अनुसार सिद्धान्तग्रन्थों के सार के रूप में हुई अतः इस ग्रन्थ का नाम गोम्मटसार रखा गया । इस ग्रन्थ का एक नाम पंचसंग्रह भी है क्योंकि इसमें बन्ध, बध्यमान, बन्धस्वामी, बन्धहेतु व बन्धभेद इन पाँच विषयों का वर्णन है। इसे गोम्मटसंग्रह अथवा गोम्मटसंग्रहसूत्र भी कहा जाता है। प्रथम सिद्धान्तग्रन्थ अथवा प्रथम श्रुतस्कन्ध के रूप में भी इसकी प्रसिद्धि है।'
गोम्मटसार में १७०५ गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है : जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड । जीवकाण्ड में ७३३ व कर्मकाण्ड में ९७२ गाथाएँ हैं।
जीवकाण्ड-गोम्मटसार के प्रथम भाग जीवकाण्ड में महाकर्मप्राभृत के सिद्धान्तसम्बन्धी जीवस्थान, क्षुद्रबन्ध, बन्धस्वामो, वेदनाखण्ड और वर्गणाखण्ड इन पाँच विषयों का विवेचन है। इसमें गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, १४ मार्गणाएँ और उपयोग इन बीस अधिकारों में जीव की विविध अवस्थाओं का वर्णन किया गया है।
प्रारम्भ में निम्नलिखित मंगलगाथा है जिसमें तीर्थकर नेमि को नमस्कार कर जीव की प्ररूपणा करने का संकल्प किया गया है :
सिद्धं सुद्धं पणमिय जिणिंदवरणेमिचंदमकलंकं । गुणरयणभूसणुदयं जीवस्स परूवणं वोच्छं ॥ १ ॥
१. देखिये-पं० खूबचन्द्र जैन द्वारा सम्पादित गोम्मटसार ( जीवकाण्ड),
प्रस्तावना, पृ० ३-६ ( परमश्रुत प्रभावक मण्डल, बम्बई, सन् १९२७ ); एस. सी. घोसाल द्वारा सम्पादित द्रव्यसंग्रह, प्रस्तावना ( अंग्रेजी ), पृ० ३९-४० ( सेंट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, आरा, सन् १९१७ ); हा० जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ३१२-३१३ ( चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, सन् १९६१ ).
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