________________
अन्य कसाहित्य
१३५ दूसरी गाथा में जीवकाण्ड के गुणस्थानादि बीस अधिकारों-प्ररूपणाओंप्रकरणों का नामोल्लेख है :
गुणजीवा पज्जत्ती पाणा सण्णा य मग्गणाओ य । उवओगो वि य कमसो वीसं तु परूवणा भणिदा ॥ २ ॥
इसके बाद आचार्य ने यह बताया है कि अभेद की विवक्षा से गुणस्थान और मार्गणा ये दो ही प्ररूपणाएँ हैं तथा भेद की विवक्षा से उपर्युक्त बीस प्ररूपणाएं हैं।
गुणस्थान प्रकरण में गुणस्थान का लक्षण बताते हुए चौदह गुणस्थानों का स्वरूप स्पष्ट किया गया है एवं संक्षेप में सिद्धों का स्वरूप बताया गया है।
जीवसमास प्रकरण में निम्नोक्त विषयों का विचार है : जीवसमास का लक्षण, जीवसमास के १४ भेद, जीवसमास के ५७ भेद, जीवसमास के स्थान, योनि, अवगाहना व कुल ये चार अधिकार ।
पर्याप्ति प्रकरण में दृष्टान्त द्वारा पर्याप्त व अपर्याप्त का स्वरूप समझाया गया है तथा पर्याप्ति के छः भेदों पर प्रकाश डाला गया है।
प्राण प्रकरण में प्राण के लक्षण, प्राण के भेद, प्राणों की उत्पत्ति एवं प्राणों के स्वामी का विचार किया गया है ।
संज्ञा प्रकरण में संज्ञा के स्वरूप, संज्ञा के भेद एवं संज्ञाओं के स्वामी का विचार है।
मार्गणा प्रकरण में निम्नोक्त १४ मार्गणाओं का विवेचन किया गया है : १. गतिमार्गणा, २. इन्द्रियमार्गणा, ३. कायमार्गणा, ४. योगमार्गणा, ५. वेदमार्गणा, ६. कषायमार्गणा, ७. ज्ञानमार्गणा, ८. संयममार्गणा, ९. दर्शनमार्गणा, १०. लेश्यामार्गणा, ११. भव्यमार्गणा, १२. सम्यक्त्वमार्गणा, १३. संज्ञिमार्गणा, १४. आहारमार्गणा । गतिमार्गणा में निम्न विषय हैं : गति शब्द की निरुक्ति, गति के नारकादि चार भेद, सिद्धगति का स्वरूप, गतिमार्गणा में जीवसंख्या। इन्द्रियमार्गणा में निम्न बातों का विचार है : इन्द्रिय का निरुक्तिसिद्ध अर्थ, इन्द्रिय के द्रव्य व भावरूप दो भेद, इन्द्रिय की अपेक्षा से जीवों के भेद, इन्द्रियों का विषयक्षेत्र, इन्द्रियों का आकार, इन्द्रियगत आत्मप्रदेशों का अवगाहनप्रमाण, अतीन्द्रिय ज्ञानियों का स्वरूप, एकेन्द्रियादि जीवों की संख्या । कायमार्गणा में निम्न विषय समाविष्ट हैं : काय का लक्षण, काय के भेद, काय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org