Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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आगमसार और द्रव्यानुयोग
१५९.
दिखलाया है । सम्यक्त्वी को ज्ञान की प्राप्ति और कर्म का क्षय शक्य है तथा वह वन्दनीय है। सम्यक्त्व विषय-सुख का विरेचन और समस्त दुःख का नाशक है-ऐसे कथन के द्वारा सम्यक्त्व के माहात्म्य का वर्णन किया है। व्यवहार की दृष्टि से जिनेश्वर द्वारा प्ररूपित जीव आदि द्रव्यों की श्रद्धा सम्यक्त्व है, तो निश्चय की दृष्टि से आत्मा सम्यक्त्व है इत्यादि बातें यहाँ उपस्थित की गई हैं । २९ वी गाथा में तीर्थकर चौसठ चामरों से युक्त होते हैं और उनके चौंतीस अतिशय होते हैं तथा ३५ वी गाथा में उनकी देह १००८ लक्षणों से लक्षित होती है इस बात का उल्लेख है । ___ टोका-दसणपाहुड तथा दूसरे पांच पाहुडों पर भी विद्यानन्दी के शिष्य और मल्लिभूषण के गुरुभाई श्रुतसागर ने संस्कृत में टीका लिखी है। दंसणपाहुड की टीका ( पृ० २७-८) में १००८ लक्षणों में से कुछ लक्षण दिये हैं । दंसणपाहुड आदि छः पाहुडों पर अमृतचन्द्र ने टीका लिखी थी ऐसा कई लोगों का मानना है ।
२. चारित्तपाहुड ( चारित्रप्राभूत -इसमें ४४ गाथाएँ हैं। इसकी दूसरी गाथा में इसका नाम 'चारित्तपाहुड' कहा है, जबकि ४४ वें पद्य में इसका 'चरणपाहुड' के नाम से निर्देश है। यह चारित्र एवं उसके प्रकार आदि पर प्रकाश डालता है । इसमें चारित्र के दर्शनाचारचारित्र और संयमचरणचारित्र ऐसे दो प्रकार बतलाये हैं । निःशंकित आदि का सम्यक्त्व के आठ गुण के रूप में उल्लेख है।
संयमचरणचारित्र के दो भेद हैं : सागार और निरागार। पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत-यह सागार अर्थात् गृहस्थों का चारित्र है, जबकि पाँच इन्द्रियों का संवरण, पाँच महाव्रतों का पालन तथा पच्चीस
१. इनका परिचय इन्हीं की रचित औदार्यचिन्तामणि इत्यादि विविध कृतियों
के निर्देश के साथ मैंने 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास' (खण्ड १ : सार्वजनीन साहित्य पृ० ४२-४, ४६ और ३०० ) में दिया है । श्रुतसागर
विक्रम की १६ वीं सदी में हुए हैं। २. उदाहरणार्थ-W. Deneke. देखिए-Festgabe Jacobi (p.
163 f.). ३. देखिए-प्रो० विन्टनित्स का ग्रन्थ History of Indian Literature,
Vol. II, p. 577.
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