Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास परभविक आयु-वेदना खण्ड के 'कमेण कालगदसमाणो........." सूत्र का व्याख्यान करते हुए टीकाकार ने व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र का निम्न उद्धरण दिया है :
जीवा णं भन्ते ! कदिभागावसेसियंसि याउगंसि परभवियं आउगं कम्म णिबंधता बंधति ? गोदम ! जीवा दुविहा पण्णत्ता-संखेज्जवस्साउआ चेव असंखेज्जवस्साउआ चेव । तत्थ जे ते असंखेज्जवस्साउआ ते छम्मासावसेसियंसि याउगंसि परभवियं आयुगं णिबंधंता बंधति । तत्थ जे ते संखेज्जवासाउआ ते दुविहा पण्णत्ता-सोवक्कमाउआ णिरुवक्कमाउआ चेव । तत्थ जे ते णिरुवक्कमाउआ ते तिभागावसे सियंसि याउगंसि परभवियं आयुगं कम्म णिबंधंता बंधति । तत्थ जे ते सोवक्कमाउआ ते सिया तिभागत्तिभागावसेसियंसि यायुगंसि परभवियं आउगं कम्म णिबंधंता बंधति ।
अर्थात् हे भगवन् ! आयु का कितना भाग शेष रहने पर जीव परभविक आय कर्म बाँधते हैं ? हे गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे गये हैं-संख्येयवर्षायष्क और असंख्येयवर्षायुष्क । इनमें से जो असंख्येयवर्षायुष्क है वे आयु के छः मास शेष रहने पर परभविक आयु बाँधते हैं । संख्येयवर्षायुष्क दो प्रकार के होते हैं.-सोपक्रमायुष्क और निरुपक्रमायुष्क । इनमें से जो निरुपक्रमायुष्क हैं वे आयु का त्रिभाग शेष रहने पर परभविक आयु कर्म बाँधते हैं। जो सोपक्रमायुष्क हैं वे आयु का कथंचित् त्रिभाग ( कथंचित् त्रिभाग का त्रिभाग एवं कथंचित् त्रिभाग-त्रिभाग का त्रिभाग ) शेष रहने पर परभविक आयु कर्म बाँधते हैं ।
वर्तमान में प्रज्ञापना सूत्र में इस आशय का वर्णन उपलब्ध होता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में इस प्रकार के कई वर्णनों के लिए 'जहा पण्णवणाए' आदि कह दिया गया है।
चणिसूत्र-धवला में कषायप्राभृत के साथ ही साथ चूणिसूत्र अर्थात् कषायप्राभतणि का भी यत्र-तत्र अनेक बार उल्लेख हुआ है। कषायप्राभूत के कर्ता आचार्य गुणधर तथा कषायप्राभृतचूर्णि के कर्ता आचार्य यतिवृषभ का नामोल्लेख इस प्रकार किया गया है :
१. पुस्तक १०, पृ० २३७.२३८. २. वही, पृ० २३८ का अन्तिम पाद-टिप्पण.
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