Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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अन्य कर्मसाहित्य
१२७ कर्मग्रन्थों की संख्या छः है । ये शिवशर्मसूरि आदि भिन्न-भिन्न आचार्यों की कृतियाँ है । इनके नाम इस प्रकार है : १. कर्मविपाक, २. कर्मस्तव, ३. बन्धस्वामित्व, ४, षडशीति, ५. शतक, ६. सप्ततिका।
कर्मविपाक के कर्ता गर्गषि हैं। ये सम्भवतः विक्रम की दसवीं सदी में विद्यमान थे । कर्मविपाक पर तीन टीकाएँ हैं : परमानन्दसूरिकृत वृत्ति, उदयप्रभसूरिकृत टिप्पन और एक अज्ञातकर्तृक व्याख्या। ये तीनों टीकाएं विक्रम की बारहवीं-तेरहवीं सदी को रचनाएँ है, ऐसा प्रतीत होता है।
कर्मस्तव के कर्ता अज्ञात हैं । इस पर दो भाष्य तथा दो टीकाए हैं। भाष्यकारों के नाम अज्ञात हैं। दो टीकाओं में से एक गोविन्दाचार्यकृत वृत्ति है । दूसरी टीका उदयप्रभसूरिकृत टिप्पन के रूप में है । इन दोनों का रचनाकाल सम्भवतः विक्रम की तेरहवीं सदी है । कर्मस्तव का नाम बन्धोदयसयुक्तस्तव भी है। बन्धस्वामित्व के कर्ता भी अज्ञात हैं । इस पर एक हरिभद्रसूरिकृत वृत्ति है । यह वृत्ति वि० सं० ११७२ में लिखी गई।
षडशीति अथवा आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण जिनवल्लभगणि की कृति है। इसकी रचना विक्रम की बारहवीं सदी में हुई । इस पर दो अज्ञातकर्तृक भाष्य तथा अनेक टीकाएँ हैं । टीकाकारों में हरिभद्रसूरि व मलयगिरि मुख्य हैं ।
शतक अथवा बन्धशतक प्रकरण के कर्ता शिवशर्मसूरि हैं । इसपर तीन भाष्य, एक चूणि व तीन टीकाएं हैं । तीन भाष्यों में से दो लघुभाष्य हैं जो अज्ञातकर्तृक हैं । बृहद्भाष्य के कर्ता चक्रेश्वरसूरि हैं । यह भाष्य विक्रम सं० ११७९ में लिखा गया । चूणिकार का नाम अज्ञात है। तीन टीकाओं में से एक के कर्ता मलधारी
१. प्रथम चार कर्मग्रन्थ सटीक-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि०
सं० १९७२. पंचम कर्मग्रन्थ सटीक(अ) जेन आत्मानन्द सभा, भावनगर, सन् १९४०. (आ) वीरसमाज ग्रन्थरत्नमाला, अहमदाबाद, सन् १९२२ व १९२३. षष्ठ कर्मग्रन्थ सटीक(अ) जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर, सन् १९१९. (आ) जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, सन् १९४०.
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