Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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चतुर्थ प्रकरण
कषायप्राभूत
कसायपाहुड' अथवा कषायप्राभूत को पेज्जदोसपाहुड, प्रेयोद्वेषप्राभृत अथवा पेज्जदोषप्राभृत' भी कहते हैं । पेज्ज का अर्थ प्रेय अर्थात् राग और दोस का अर्थ द्वेष होता है। चूंकि प्रस्तुत ग्रन्थ में राग और द्वेषरूप कषाय का प्रतिपादन किया गया है इसलिए इसके दोनों नाम सार्थक हैं। ग्रन्थ की प्रतिपादन शैली अति गूढ, संक्षिप्त एवं सूत्रात्मक है। प्रतिपाद्य विषयों का केवल निर्देश कर दिया गया है।
कषायप्राभृत की आगमिक परम्परा :
कर्मप्राभृत अर्थात् षट्खण्डागम के ही समान कषायप्राभृत का उद्गमस्थान भी दृष्टिवाद नामक बारहवां अंग ही है। उसके ज्ञानप्रवाद नामक पाँचवें पूर्व को दसवीं वस्तु के पेज्जदोष नामक तीसरे प्राभृत से कषायप्राभृत की उत्पत्ति हुई है। जिस प्रकार कर्मप्रकृति प्राभृत से उत्पन्न होने के कारण षट्खण्डागम को कर्मप्राभृत, कर्मप्रकृतिप्राभृत अथवा महाकर्मप्रकृतिप्राभृत कहा जाता है उसी प्रकार घेज्जदोष प्राभृत से उत्पन्न होने के कारण कषायप्राभृत को भी पेज्जदोषप्राभृत कहा जाता है।
१. ( अ ) चूर्णिसूत्र-समन्वित–सम्पादक एवं हिन्दी अनुवादक : पं० हीरालाल
जैन; प्रकाशक : वीर-शासन-संघ, कलकत्ता, सन् १९५५. (आ) जयधवला टीका व उसके हिन्दी अनुवाद के साथ ( अपूर्ण )
सम्पादक : पं० फूलचन्द्र, पं० महेन्द्रकुमार व पं० कैलाशचन्द्र; प्रकाशक : भा० दि० जैनसंघ, चौरासी, मथुरा, सन् १९४४-१९६३
(नौ भाग ). २. श्रुतावतार के कर्ता आचार्य इन्द्रनन्दि ने इसे 'प्रायोदोषप्राभृत' नाम दिया ___ है । वस्तुतः इसका संस्कृत रूप 'प्रेयोद्वेषप्राभृत' होना चाहिये।
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