Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पाँचवें पूर्व की दसवीं वस्तु में पेज्जपाहुड नामक तीसरा प्राभृत है । उससे यह कषायप्राभृत उत्पन्न हुआ है :
पुव्वम्मि पंचमम्मि दु दसमे वत्थुम्मि पाहुडे तदिए । पेज्जं ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडं नाम ॥ १ ॥
दूसरी गाथा में यह बताया गया है कि इस कषायप्राभृत में १८० गाथाएँ हैं जो पन्द्रह अर्थाधिकारों में विभक्त हैं । तृतीयादि गाथाओं में यह निर्देश किया गया है कि किस-किस अर्थाधिकार में कितनी - कितनी गाथाएँ हैं ।
प्रेय, द्वेष, स्थिति, अनुभाग और बन्धक - इन पांच अर्थाधिकारों में तीन गाथाएँ हैं । वेदक में चार, उपयोग में सात, चतुःस्थान में सोलह, व्यञ्जन में पाँच, दर्शन मोहोपशामना में पन्द्रह, दर्शनमोहक्षपणा में पाँच, संयमासंयमलब्धि और चारित्रलब्धि — इन दोनों में एक, चारित्रमोहोपशामना में आठ, चारित्रमोह की क्षपणा के प्रस्थापन में चार, संक्रमण में चार, अपवर्तना में तीन, कॄष्टीकरण में ग्यारह, क्षपणा में चार, क्षीणमोह के विषय में एक, संग्रहणी के विषय में एक- इस प्रकार सब मिलकर चारित्रमोहक्षपणा में अट्ठाईस गाथाएँ हैं । इन सब गाथाओं का योग ( ३+४+ ७ + १६ + ५ + १५ + ५ + १ + ८ +४+४+३+११+ ४ + १ + १ ) ९२ होता है ।
कृष्टिसम्बन्धी ग्यारह गाथाओं में से वीचारविषयक एक गाथा, संग्रहणीसम्बन्धी एक गाथा, क्षीणमोहसम्बन्धी एक गाथा और चारित्रमोह की क्षपणा के प्रस्थापन से सम्बन्धित चार गाथाएँ — इस प्रकार चारित्रमोहक्षपणासम्बन्धी सात माथाएँ अभाष्य-गाथाएँ हैं तथा शेष इक्कीस गाथाएँ सभाष्य - गाथाएँ हैं । इन इक्कीस गाथाओं की भाष्यगाथा - संख्या छियासी है । इनमें 'पेज्ज - दोसविहत्ती "और 'सम्मत्त - देसविरयी' इन दो (१३-१४ ) गाथाओं को मिलाने पर कषायप्राभृत की गाथाओं का योग ( ९२ + ८६ + २ ) १८० हो जाता है ।
प्रेयोद्वेषादि अधिकारों में सामान्यरूप से व्याप्त अद्धा - परिमाण का निर्देश करते हुए कहा गया है कि अनाकार दर्शनोपयोग, चक्षु, श्रोत्र, घ्राण और जिह्वेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञान, मनोयोग, वचनयोग, काययोग, स्पर्शनेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञान, अवायज्ञान, ईहाज्ञान, श्रुतज्ञान और उच्छ्वास — इन सब का जघन्यकाल ( क्रमशः बढ़ता हुआ ) संख्येय मावलीप्रमाण है । केवलदर्शनकेवलज्ञान आदि का जघन्यकाल उत्तरोतर अधिक होता जाता है । यह सब
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