Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
चूडामणिव्याख्या, ५. बप्पदेवगुरुकृत व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति, ६. आचार्य वीरसेन जिनसेनकृत जयधवलाटीका |
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इन छः टीकाओं में से प्रथम व अन्तिम अर्थात् चूर्णि व जयधवला ये दो टीकाएँ वर्तमान में उपलब्ध हैं ।
यतिवृषभकृत चूर्णि :
धवला टीका में कषायप्राभृत एवं चूर्णिसूत्र अर्थात् कषायप्राभृतचूर्णि का यत्र-तत्र अनेक बार उल्लेख हुआ है । उसमें कहा गया है कि विपुलाचल के शिखर पर स्थित त्रिकाल गोचर षड्द्रव्यों का प्रत्यक्ष करने वाले वर्धमान भट्टारक द्वारा गौतम स्थविर के लिए प्ररूपित अर्थ आचार्य - परम्परा से गुणधर भट्टारक को प्राप्त हुआ । उनसे वह आचार्य परम्परा द्वारा आर्यमक्षु और नागहस्ती भट्टारकों के पास आया । उन दोनों ने क्रमशः यतिवृषभ भट्टारक के लिए उसका व्याख्यान किया । यतिवृषभ ने शिष्यों के अनुग्रह के लिए उसे चूर्णिसूत्र में आबद्ध किया । "
यतिवृषभ का समय विभिन्न अनुमानों के आधार पर विक्रम की छठी शताब्दी माना जाता है । तिलोयपण्णत्ति - त्रिलोकप्रज्ञप्ति भी इन्हीं की कृति है ।
अर्थाधिकार - कषायप्राभृत-चूर्णि के प्रारम्भ में लिखा है कि ज्ञानप्रवाद पूर्व की दसवीं वस्तु के तृतीय प्राभृत का उपक्रम पाँच प्रकार का है : आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार । आनुपूर्वी तीन प्रकार की है । नाम छः प्रकार का है । प्रमाण सात प्रकार का है । वक्तव्यता तीन प्रकार की है | अर्थाधिकार पन्द्रह प्रकार का है । 3
वो नाम - प्रस्तुत प्राभृत के दो नाम हैं : पेज्जदोसपाहुड - प्रेयोद्वेषप्राभृत और कसायपाहुड — कषायप्राभृत । इनमें से प्रेयोद्वेषप्राभृत नाम अभिव्याहरण
१. षट्खण्डागम, पुस्तक १२, पृ० २३१-२३२.
२. कसायपाहुड, भा० १, प्रस्तावना, पृ० ३८- ६३; कसायपाहुड सुत्त, प्रस्तावना, पृ० ५७-५९.
३. णाणप्पवादस्स पुव्वस्स दसमस्स वत्थुस्स तदियस्स पाहुडस्स पंचविहो उवक्कमो । तं जहा – आणुपुव्वी णाणं पमाणं वत्तव्वदा अत्याहियारो चेदि । आणुपुव्वी तिविहा । णामं छव्विहं । पमाणं सत्तविहं । अत्याहियारो पण्णारसविहो ।
वत्तव्वदा तिविहा ।
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- कसायपाहुड सुत्त, पृ २-४.
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