Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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पंचम प्रकरण
कषायप्राभृत की व्याख्याएँ
? नन्दिकृत श्रुतावतार में उल्लेख है कि आचार्य गुणधर ने कषायप्राभृत की रचना कर नागहस्ती और आर्यमंक्षु को उसका व्याख्यान दिया । यतिवृषभ ने उनसे कषायप्राभृत पढ़कर उस पर छः हजार श्लोकप्रमाण चूर्णिसूत्र लिखे। यतिवृषभ ने उन चूर्णिसूत्रों का अध्ययन कर उच्चारणाचार्य (पदपरक नाम) ने उन पर बारह हजार श्लोकप्रमाण उच्चारणसूत्रों की रचना की। उसके बाद बहुत काल बीतने पर आचार्य शामकुण्ड ने षट्खण्डागम और कषायप्राभूत का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर महाबन्ध नामक षष्ठ खण्ड के अतिरिक्त दोनों ग्रन्थों पर बारह हजार श्लोकप्रमाण प्राकृत-संस्कृत-कन्नड़मिश्रित पद्धतिरूप वृत्ति बनाई । उसके बाद बहुत समय व्यतीत होने पर तुम्बुलूराचार्य ने भी षट्खण्डागम के प्रथर पाँच खण्डों तथा कषायप्राभृत पर कन्नड़ में चौरासी हजार श्लोकप्रमाण चूडामणि नामक बृहत्काय व्याख्या लिखी। तत्पश्चात् बहुत काल बीतने पर बप्पदेवगुरु ने षट्खण्डागम और कषायप्राभृत पर अड़सठ हजार श्लोकप्रमाण प्राकृत टीका लिखी। उसके बाद बहुत समय के पश्चात् वीरसेनगुरु ने षट्खण्डागम के पाँच खण्डों पर बहत्तर हजार श्लोकप्रमाण प्राकृत-संस्कृतमिश्रित धवला टीका लिखी। उसके बाद कषायप्राभूत की चार विभक्तियों पर इसी प्रकार की बीस हजार श्लोकप्रमाण जयधवला टीका लिखकर वे स्वर्गवासी हुए। इस अपूर्ण जयधवला को उन्हीं के शिष्य जयसेन ( जिनसेन ) ने चालीस हजार श्लोकप्रमाण टीका और लिख कर पूर्ण किया ।
श्रुतावतार के इस उल्लेख से प्रकट होता है कि कषायप्राभृत पर निम्नोक्त टीकाएँ लिखी गई :
१. आचार्य यतिवृषभकृत चूणिसूत्र, २. उच्चारणाचार्यकृत उच्चारणावृत्ति अथवा मूल उच्चारणा, ३. आचार्य शामकुण्डकृत पद्धतिटीका, ४. तुम्बुलूराचार्यकृत
१. ये दोनों प्राकृत में लिखे गये। २. देखिए-षट्खण्डागम, पुस्तक १, प्रस्तावना, पृ० ४६-५३; कसायपाहुड,
भा० १, प्रस्तावना, पृ० ९-१०.
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