Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कर्मप्राभृत की व्याख्याएँ कि अक्षर-श्रुतज्ञान भी षड्विध वृद्धि से बढ़ता है। उनका यह कथन घटित नहीं होता क्योंकि सकल श्रुतज्ञान के संख्यातवें भागरूप अक्षर-ज्ञान से ऊपर षड्वृद्धियों का होना सम्भव नहीं है। अक्षर-श्रुतज्ञान से ऊपर और पद-श्रुतज्ञान से नीचे सख्येय विकल्पों की अक्षरसमास संज्ञा है। इससे एक अक्षर-ज्ञान बढ़ने पर पद नामक श्रुतज्ञान होता है। १६३४८३०७८८८ अक्षरों का एक द्रव्यश्रुत-पद होता है । इन अक्षरों से उत्पन्न भावश्रुत भी उपचार से पद कहा जाता है । इस पद-श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर-श्रुतज्ञान बढ़ने पर पदसमास नामक श्रुतज्ञान होता है। इस प्रकार एक-एक अक्षर के क्रम से पदसमास-श्रुतज्ञान बढ़ता हुआ संघात-श्रुतज्ञान तक जाता है । संख्येय पदों द्वारा संघात-श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है । इसके ऊपर एक अक्षर-श्रुतज्ञान बढ़ने पर संघातसमास नामक श्रुतज्ञान होता है । संघातसमास बढ़ता हुआ एक अक्षर-श्रुतज्ञान से न्यून प्रतिपत्ति-श्रुतज्ञान तक जाता है। प्रतिपत्ति-श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर-श्रुतज्ञान बढ़ने पर प्रतिपत्तिसमास नामक श्रुतज्ञान होता है । प्रतिपत्तिसमास बढ़ता हुआ एक अक्षर-श्रुतज्ञान से न्यून अनुयोगद्वार-श्रुतज्ञान तक जाता है। इस प्रकार पूर्वसमास तक श्रुतज्ञान के भेदों का स्वरूप समझना चाहिए । पूर्वसमास लोकबिन्दुसार के अन्तिम अक्षर तक जाता है।'
नरक में सम्यक्त्वोत्पत्ति-सूत्रकार ने नरक में सम्यक्त्वोत्पत्ति के तीन कारण बतलाये हैं : जातिस्मरण, धर्मश्रवण और वेदानुभव । टीकाकार ने इन तीनों कारणों के विषय में शंकाएँ उठाकर उनका समाधान किया है। जातिस्मरण अर्थात् भवस्मरण के विषय में यह शंका उठाई गयी है कि चूंकि सभी नारकी विभंगज्ञान के द्वारा एक, दो, तीन आदि भवग्रहण जानते हैं इसलिए सभी को जातिस्मरण होता है। ऐसी स्थिति में सभी नारकी सम्यग्दृष्टि होने चाहिए । इसका समाधान इस प्रकार किया गया है कि सामान्य भवस्मरण से सम्यक्त्व की उत्पत्ति नहीं होती किन्तु धर्मबुद्धि से पूर्वभव में किये गये अनुष्ठानों की विफलता के दर्शन से प्रथम सम्यक्त्व की उत्पत्ति होती है । धर्मश्रवण के सम्बन्ध में यह शंका उठाई गयी है कि नारकी जीवों के धर्मश्रवण की सम्भावना कैसे हो सकती है जबकि वहाँ ऋषियों का गमन ही नहीं होता ? इसका समाधान यों किया गया है-अपने पूर्वभव के सम्बन्धियों में धर्म उत्पन्न कराने में प्रवृत्त समस्त बाधाओं से रहित सम्यग्दृष्टि देवों का नरक में गमन देखा जाता है । वेदनानुभवन के विषय में यह शंका उठाई गयी है कि सब नारकियों में सामान्य होने के कारण वेदना का
१. वही, पृ० २१-२५.
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