Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कम प्राभृत की व्याख्याएँ
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जिसका परिमाण सात हजार श्लोक था । इन टीकाओं का भी कोई उल्लेख घवला आदि में दृष्टिगोचर नहीं होता । तुम्बुलूराचार्य शामकुण्डाचार्य से बहुत बाद हुए ।
समन्तभद्रकृत टीका :
समन्तभद्रस्वामी ने कर्मप्राभृत के प्रथम पाँच खण्डों पर अड़तालीस हजार श्लोक प्रमाण टीका लिखी । यह टीका अति सुन्दर एवं मृदु संस्कृत भाषा में थी । समन्तभद्रस्वामी तुम्बुलूराचार्य के बाद हुए । इन्द्रनन्दि ने समन्तभद्र को 'तार्किकार्क' विशेषण से विभूषित किया है । धवला में यद्यपि समन्तभद्रकृत आप्तमीमांसा आदि के अवतरण उद्धृत किये गये हैं किन्तु प्रस्तुत टीका का कोई उल्लेख उसमें नहीं पाया जाता ।
बप्पदेवकृत व्याख्याप्रज्ञप्ति :
देवगुरु ने कर्मप्राभृत और कषायप्राभृत पर टीकाएँ लिखीं । उन्होंने कर्मप्राभृत के पाँच खण्डों पर जो टीका लिखी उसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति था । षष्ठ खण्ड पर उनकी व्याख्या संक्षिप्त थी । यह व्याख्या पंचाधिक अष्टसहस्र श्लोकप्रमाण थी । पाँच खण्डों और कषायप्राभृत की टीकाओं का संयुक्त परिमाण साठ हजार श्लोक था । इन सब व्याख्याओं की भाषा प्राकृत थी । कषायप्राभृत की जयघवला टीका में एक स्थान पर बप्पदेव के नाम का उल्लेख किया गया है । - बप्पदेव समन्तभद्र के बाद होनेवाले आचार्य हैं ।
धवलाकार वीरसेन :
कर्मप्राभृत की उपलब्ध टीका धवला के कर्ता का नाम वीरसेन है । ये आर्यनन्दि के शिष्य तथा चन्द्रसेन के प्रशिष्य थे तथा एलाचार्य इनके विद्यागुरु थे । वीरसेन सिद्धान्त, छन्द, ज्योतिष, व्याकरण तथा प्रमाणशास्त्र में निपुण थे एवं भट्टारक पद से विभूषित थे । २ कषायप्राभृत को टीका जयधवला का प्रारम्भ का एक-तिहाई भाग भी इन्हीं वीरसेन का लिखा हुआ है ।
इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार में बताया गया है कि बप्पदेवगुरु द्वारा सिद्धान्त - ग्रन्थों की टीका लिखे जाने के कितने ही काल पश्चात् सिद्धान्ततत्त्वज्ञ एलाचार्य
१. क्या यह पंजिका सत्कर्मपंजिका से भिन्न है ?
- देखिये, षट्खण्डागम, पुस्तक १५, प्रस्तावना, पृ० १८. २. षट्खण्डागम, पुस्तक १६ के अन्त में धवलाकार - प्रशस्ति.
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