Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कर्मप्राभृत विधान, ५. वेदनक्षेत्रविधान, ६. वेदनकालविधान, ७. वेदनभावविधान, ८. वेदनप्रत्ययविधान, ९. वेदनस्वामित्व विधान, १०. वेदनवेदनविधान, ११. वेदनगतिविधान, १२. वेदनअनन्तरविधान, १३. वेदनसन्निकर्षविधान, १४. वेदनपरिमाणविधान, १५. वेदनभागाभागविधान, १६. वेदनअल्पबहुत्व ।'
वेदननिक्षेप चार प्रकार का है : नामवेदना, स्थापनावेदना, द्रव्यवेदना और भाववेदना ।।
वेदननयविभाषणता में यह बताया गया है कि कौन-सा नय किन वेदनाओं को स्वीकार करता है।
वेदननामविधान में नयों की अपेक्षा से वेदना के विविध भेदों का प्रतिपादन किया गया है।
वेदनद्रव्यविधान में तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं : पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व ।
वेदनक्षेत्रविधान में भी तीन अनुयोगद्वार हैं : पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व ।
वेदनकालविधान में भी ये ही तीन अनुयोगद्वार हैं। वेदनभावविधान में भी इन्हीं तीन अनुयोगद्वारों का प्ररूपण है ।
वेदनप्रत्ययविधान में बताया गया है कि नैगम, व्यवहार एवं संग्रह नय की अपेक्षा से ज्ञानावरणीय वेदना प्राणातिपात प्रत्यय से होती है, मृषावाद प्रत्यय से होती है, अदत्तादान प्रत्यय से होती है, मैथुन प्रत्यय से होती है, परिग्रह प्रत्यय से होती है, रात्रिभोजन प्रत्यय से होती है । इसी प्रकार क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह, प्रेम, निदान, अभ्याख्यान, कलह, पैशुन्य, रति, अरति, उपधि, निकृति आदि प्रत्ययों से भी ज्ञानावरणीय वेदना होती है। इसी तरह शेष सात कर्मों के विषय में समझना चाहिए। ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा से ज्ञानावरणीय वेदना योगप्रत्यय से प्रकृति व प्रदेशरूप तथा कषायप्रत्यय से स्थिति व अनुभागरूप होती है। इसी प्रकार का प्ररूपण शेष सात कर्मों के विषय में भी कर लेना चाहिए । शब्द नयों की अपेक्षा से ये प्रत्यय अवक्तव्य हैं।
१. सू० १ ( पुस्तक १०). ३. सू० १-४ ( वेदननयविभाषणता ). ५. सु० १-२१३ ( वेदनद्रव्यविधान ). ७. सू० १-२७९ ( वेदनकालविधान ). ९. सू० १-१६ ( वेदनप्रत्ययविधान ).
२. सू० २-३. ४. सू० १-४ (वेदननामविधान). ६. सू० १-९९ ( पुस्तक ११). ८. सू० १-३१४ (पुस्तक १२ ).
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