Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Mohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कर्मप्राभृत प्रत्ययविधान, ९. स्पर्शस्वामित्वविधान, १०. स्पर्शस्पर्शविधान, ११. स्पर्शगतिविधान, १२. स्पर्शअनन्तरविधान, १३. स्पर्शसन्निकर्षविधान, १४. स्पर्शपरिमाणविधान, १५. स्पर्शभागाभागविधान, १६. स्पर्शअल्पबहुत्व ।'
कर्म-अनुयोगद्वार-कर्म-अनुयोगद्वार के भी कर्मनिक्षेपादि सोलह अधिकार हैं ।
प्रकृति-अनुयोगद्वार-प्रकृति-अनुयोगद्वार भी प्रकृतिनिक्षेपादि सोलह अधिकारों में विभक्त है।
बन्धन-अनुयोगद्वार-बन्धन के चार भेद हैं : बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बन्धविधान । इनमें से बन्ध चार प्रकार का है : नामबन्ध, स्थापनाबन्ध, द्रव्यबन्ध और भावबन्ध ।
बन्धक का गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद कषाय आदि चौदह मार्गणाओं में विचार करना चाहिए। गति की अपेक्षा से नारकी बन्धक हैं, तिर्यञ्च बन्धक हैं, देव बन्धक है, मनुष्य बन्धक भी हैं और अबन्धक भी, सिद्ध अबन्धक हैं । इस प्रकार यहाँ क्षुद्रकबन्ध के ग्यारह अनुयोगद्वार जानने चाहिए। ग्यारह अनुयोगद्वारों का कथन करके महादण्डकों का भी कथन करना चाहिए।"
बन्धनीय का इस प्रकार अनुगमन करते हैं : वेदनात्मक पुद्गल हैं, पुद्गल स्कन्धस्वरूप हैं, स्कन्ध वर्गणास्वरूप हैं। वर्गणाओं के अनुगमन के लिए आठ अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं : वर्गणा, वर्गणाद्रव्यसमुदाहार, अनन्तरोपनिधा, परम्परोपनिधा, अवहार, यवमध्य, पदमीमांसा और अल्पबहुत्व । इनमें से वर्गणा-अनुयोगद्वार के निम्नोक्त सोलह अधिकार हैं : १. वर्गणानिक्षेप, २. वर्गणानयविभाषणता, ३. वर्गणाप्ररूपणा, ४. वर्गणा-निरूपणा, ५. वर्गणाध्रुवाध्रुवानुगम, ६. वर्गणासान्तरनिरन्तरानुगम, ७. वर्गणाओजयुग्मानुगम, ८. वर्गणाक्षेत्रानुगम, ९. वर्गणास्पर्शनानुगम, १०. वर्गणाकालानुगम, ११. वर्गणाअन्तरानुगम, १२. वर्गणाभावानुगम, १३. वर्गणाउपनयनानुगम, १४. वर्गणापरिमाणानुगम, १५. वर्गणाभागाभागानुगम, १६. वर्गणाअल्प
बहुत्व ।
१. सू० २ ( पुस्तक १३ ). ३. सू० १-२ ( प्रकृति-अनुयोगद्वार ). ५. सू० ६५-६७. ७. सू० ७०.
२. सू० २ ( कर्म-अनुयोगद्वार ). ४. सू० १-२ ( पुस्तक १४ ). ६. सू० ६८-६९.
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