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प्रस्तावना : २१
की रचना के बाद जिनसेन की मृत्यु हो गयी थी । इस अपूर्ण रचना को पूर्ण करने का महनीय कार्य उनके शिष्य गुणभद्र ने किया । नाथूराम प्रेमी के अनुसार यदि जिनसेन की मृत्यु के समय गुणभद्र की आयु २५ -वर्ष मान ली जाए तो शकसंवत् ७४० (८१८ ई० ) के लगभग उनका जन्म हुआ होगा । परन्तु गुणभद्र ने उत्तरपुराण की रचना व समाप्ति कब की और वे कब तक जीवित रहे यह सर्वथा अन्वेषणीय है । ६१
हीरालाल जैन ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि अमोघवर्ष के उत्तराधिकारी कृष्ण द्वितीय ( ल० ८७८-९१४ ई० ) के काल में गुणभद्राचार्य ने 'उत्तरपुराण का लेखन पूरा किया । २ पन्नालाल जैन के अनुसार गुणभद्र की आयु यदि गुरु जिनसेन के स्वर्गवास के समय २५ वर्ष मान ली जाय तो शकसंवत् ७४० ( ८१८ ई० ) के लगभग उनका जन्म हुआ होगा, परन्तु उत्तरपुराण कब समाप्त हुआ तथा गुणभद्राचार्य कब तक जीवित रहे, यह निर्णय करना कठिन है । 3 यद्यपि उत्तरपुराण की प्रशस्ति में यह लिखा है कि उसकी समाप्ति शकसंवत् ८२० ( ८९८ ई० ) में हुई, परन्तु प्रशस्ति स्वयं दो रूपों में विभाजित है । पहला रूप गुणभद्र स्वामी का और दूसरा उनके शिष्य लोकसेन का । ४ लोकसेन द्वारा लिखी गयी प्रशस्ति उस समय की प्रतीत होती है जबकि उत्तरपुराण की 'विधिपूर्वक पूजा की गयी थी । इस प्रकार उत्तरपुराण की प्रशस्ति में उसकी पूर्ति का जो काल ( शकसंवत् ८२० ) दिया गया है वह वस्तुतः उसकी पूजा महोत्सव का है । ६५ गुणभद्राचार्य ने उत्तरपुराण के ही समान अपने अन्य ग्रन्थों जैसे आत्मानुशासन तथा जिनदत्तचरित में भी ग्रन्थ की पूर्ति का शकसंवत् नहीं दिया है । अतः गुणभद्र का ठीक-ठीक समय बता पाना कठिन है किन्तु कृष्ण द्वितीय के साथ गुणभद्र की समकालिकता के आधार पर ९१४ ई० यानी दसवीं शती ई० के प्रारम्भ तक गुणभद्र का काल रखा जा सकता है ।
इस प्रकार विभिन्न विद्वानों के उल्लेखों के आधार पर जिनसेन व - गुणभद्र के महापुराण का अनुमानित रचनाकाल ९वीं शती ई० से १०वीं - शती ई० के प्रारम्भ के मध्य निर्धारित किया जा सकता है |
जिनसेन एवं गुणभद्र की रचनाएँ :
जिनसेन प्रणीत ग्रन्थों में पाश्वभ्युदय, वर्धमानपुराण, जयधवलाटीका तथा आदिपुराण सर्वप्रमुख हैं । पाश्वभ्युदय कालिदास के मेघदूत से प्रभावित भाषाशैली वाला ग्रन्थ है । ६७ इस ग्रन्थ में पार्श्वनाथ की
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