________________
शलाका पुरुष : १२९ इन्हीं की दूसरी महारानी मृगावती के गर्भ से प्रथम नारायण व अर्धचक्री 'त्रिपृष्ठ' का जन्म हुआ था ।५५ त्रिपृष्ठ को जन्म देने से पूर्व मृगावती ने कुछ शुभ स्वप्न भी देखे थे ।५६ बलभद्र विजय का शरीर शंख के समान सफेद तथा त्रिपृष्ठ का इन्द्र नीलमणि के समान नीला था। विजय के गदा, रत्नमाला, मुसल और हल तथा त्रिपृष्ठ के धनुष, शंख, चक्र, दण्ड, असि, शक्ति और गदा क्रमशः चार और सात रत्न थे।५७ वे दोनों ही सोलह हजार मुकुटबद्ध राजाओं, विद्याधरों एवं व्यन्तर देवों के आधिपत्य को प्राप्त हुए थे। ___ अश्वग्रीव इनका शत्रु था। इसका जन्म विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी की अलका नगरी के स्वामी मयूरग्रीव के यहाँ हुआ था। 'त्रिपृष्ठ' नारायण ने अश्वग्नीव का वध किया और फलस्वरूप सातवें नरक को प्राप्त हए । इसी प्रकार 'अश्वग्रीव' प्रतिनारायण भी सातवें नरक गया। त्रिपष्ठ की मृत्यु से दुःखी होकर बलभद्र विजय ने सूवर्णकुम्भ नामक योगिराज के पास संयम धारण कर लिया और अन्त में परमात्म अवस्था को प्राप्त हुए।५८ २. अचल, द्विपृष्ठ और तारक :
अचल, द्विपृष्ठ और तारक जैन परम्परा के क्रमशः दूसरे बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण हैं । बलभद्र, 'अचल' का जन्म भरतक्षेत्र की द्वारावती नगरी के राजा ब्रह्म के सुभद्रा नामक महारानी के गर्भ से हुआ था। इन्हीं की दूसरी रानी उषा से 'द्विपृष्ठ' नामक पुत्र का जन्म हुआ। इन दोनों भाईयों का वर्ण क्रमशः कुन्द पुष्प और इन्द्रनीलमणि के समान था। ये दोनों बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के समकालीन थे।
इसी समय भरतक्षेत्र के भोगवर्धन नामक राजा के यहाँ तारक नामक पुत्र हुआ। अपने चक्र के भय से उसने समस्त विद्याधर और भूमिगोचरियों को अपना दास बना रखा था। श्यामवर्ण वाला तारक सदैव शत्रुओं को ढंढता रहता था और अखण्ड तीन खण्डों का स्वामित्व धारण करता था। वह द्विपृष्ठ नारायण और अचल बलभद्र की वृद्धि को सहन नहीं कर सका और उन दोनों को अपना शत्रु मान, उन्हें नष्ट करने के उद्देश्य से उनके पास एक दूत भेजा और कहलवाया कि उनके पास जो प्रसिद्ध ग्रन्थ हस्ती है वे उसे दे दें। फलस्वरूप तीनों के मध्य युद्ध हुआ। चिरकाल तक युद्ध करने के बाद भी द्विपष्ठ के अपराजेय रहने पर उसने अपने चक्र को उन पर फेंका जो उनकी प्रदक्षिणा कर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org