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२०२: जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
राजप्रासाद एवं सामान्य भवन :
जैन पुराणों में भवन निर्माण कला के सम्बन्ध में अनेक तथ्य प्राप्त होते हैं। पद्मपुराण व आदिपुराण में तीर्थंकर ऋषभदेव द्वारा शिल्पकला की शिक्षा प्रजा को दिये जाने का उल्लेख है। २ ।
पद्मपुराण में नगर में निवास हेतु गृह, आगार ( छोटे महल ), प्रासाद ( बड़े महल ) तथा सद्म ( बड़े महल ) आदि शब्दों का प्रयोग आया है । 3 इनकी चूने से पुताई की जाती थी। महलों की भित्तियों पर काले, पीले, नीले, लाल एवं हरे इन पाँच रंगों के चूर्ण से बेलकूटे चित्रित किये जाते थे। शुभ एवं मांगलिक अवसरों पर द्वारों पर जल से परिपूर्ण कलश रखे जाते थे और मालाएं व अच्छे-अच्छे वस्त्रों द्वारा शोभार्थ उन्हें सुसज्जित करते थे।५
जैन पुराणों में राजप्रासादों की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख मिलता है । हरिवंशपुराण में चन्द्रकान्त व पद्मराग-मणियों से युक्त व शंख के समान श्वेत महल का उल्लेख है जो नगर के मध्य में स्थित था। इसके द्वार के तोरण हीरे के और द्वार सुवर्ण तथा रत्नमय थे। उसके चारों ओर उसो के समान विस्तार वाले और भी बहुत से भवनों के होने का उल्लेख है। हरिवंशपुराण में एक अन्य स्थल पर अनेक खण्डों, सुवर्णमय प्राकार तथा गोपुरों, मणिमय फर्श, अन्तःपुर वापिका तथा बाग आदि से विभूषित राजप्रासादों का वर्णन है । ७ राजप्रासादों में ऊँचेऊँचे व सुवर्ण के कलश से युक्त शिखरों का निर्माण किया जाता था। राजभवनों का मुख पूर्व दिशा की ओर होता था एवं इसमें अनेक प्रकार की गलियाँ, कोट, शृंगार-गृह इत्यादि होते थे। राजभवन के चारों ओर चार दरवाजों, कोट व गोपुरद्वारों से सुशोभित बहत बड़ा और चौकोर स्वयंवर-महाभवन होता था। राजप्रासादों के धरातल पक्के व नीलमणियों से जटित होते थे।९ राजा के दरबार में अनेक गोपुर, कोठ, सभाभवन, शालाएँ, कूट, प्रेक्षागृह तथा कार्यालय आदि का होना अनिवार्य था ।९० राजभवन में एक बाह्य दरवाजा और अन्दर जाकर मणिमय धरातल से सुशोभित सभाभवन होता था । सभाभवन के मध्य में रत्नजटित स्तंभों से युक्त रत्नमण्डप होता था जिसपर रेशमी वस्त्रों के चंदोवे ताने जाते थे तथा मोतियों व मणियों से युक्त लम्बे-लम्बे फानूस लटकाये जाते थे। रत्नमण्डप में स्थित ऊँचे सिंहासन पर राजा सुशोभित होता था।१ राजप्रासाद ऊँचे होते थे और उनके शिखरों के अग्रभाग
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