Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Author(s): Kumud Giri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 258
________________ सांस्कृतिक जीवन : २४५ ९५. आदिराण ३७,१८५ । ९६. भगवतीसूत्र ९.३३.३; १०वीं-११वीं शती ई० के देवगढ़ मन्दिर ११ और १२ को अंबिका ब चक्रेश्वरी यक्षी की आकृतियों के करों में कटक के स्पष्ट उदाहरण देखे जा सकते हैं । कर्नाटक से प्राप्त लगभग ११वीं शती ई० को चतुर्भुजा चक्रेश्वरी मूर्ति के करों में वर्तमान चूड़ी के समान आभूषण है। ९७. वहीं। ९८. रघुवंश ६.१८; अभिज्ञानशाकुन्तलम् ६.१, २ । ९९. हरिवंशपुराण ८.१८६, ४५.११; आदिपुर राण ७.२३५; ४७.२१९; उत्तर पुराण ५९.१६७; ६८.३६७, पद्मपुराण ३.१९५ ।। १००. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, चित्र सं० ५४; यू० पी० शाह, पू० नि०, चित्र सं० १२५ । १०१. पद्मपुराण ३३.१३१ । १०२. पदमपुराण ७६.६५; आदिपुराण ३.१५९; ११.४४; १२.३०, ३८; १४. ११-१४; १४; १९.१२९; उत्तरपुराण ६३.४३७ । १०३. कमल गिरि, पू० नि०, पृ० २१ ।। १०४. भगवतीसूत्र ९.३३.३ । १०५. रघुवंश ९.३७; १९.२५; कुमारसम्भव ८.८३ । १०६. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, चित्र सं० २०, ३७, ५३, ५४; आर० एस० गुप्ते एवं बी० डी० महाजन, पू० नि०, चित्र सं० १४० ।। १०७. ऋतुसंहार ३.२६; ६.७ । १०८. पद्मपुराण ३.१९४; ८.७२; आदिपुराण ७.१२९; १२.२९; ( ११वीं शतो ई० की पतियानदाई ( सतना, म० प्र०) की अंबिका मूर्ति में कांची का स्पष्ट उदाहरण द्रष्टव्य है)। १०९. आदिपुराण १५.२०३ । ११०. रघुवंश १९.४१; ऋतुसंहार ३.२०; मेघदूत (पूर्व ) ३९ । १११. आदिपुराण १३.६९; १६.१६,१९; हरिवंशपुराण ७.८९; ११.१५ । ११२. भगवतीसूत्र ९.३३.३; आदिपुराण १६.१३७ । ११३. कमल गिरि, पू० नि०, पृ० २६५ । ११४. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, चित्र सं० ५१, ५३, ५४ । ११५. आर० एस० गुप्ते एवं बी० डी० महाजन, पू० नि०, चित्र सं० १४० । ११६. यू० पी० शाह, पू० नि०, चित्र सं० ११६ । ११७. आदिपुराण १४.१४ । ११८. मोतीचन्द्र, पू० नि०, भूमिका, पृ० २० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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