Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Author(s): Kumud Giri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 257
________________ २४४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन ७१. आदिपुराण १६.६२-६४ । ७२. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, वाराणसी १९६८, पृ० २१६ । ७३. आदिपुराण ६.८ ।। ७४. आदिपुराण १५.१९३; हरिवंशपुराण ४७.३८ । ७५. पद्मपुराण ३,२७७; ८८.६१ । ७६. पद्मपुराण ३३.१८३; आदिपुराण २९,१६७ । ७७. हरिवंशपुराण ११.१३ । ७८. आदिपुराण १५,१९२-१९४ । ७९, आदिपुराण १४.११ । ८०. पद्मपुराण १००.२५ । ८१, आदिपुराण १५.८१; पद्मपुराण ३,१९१; एलोरा को गुफा सं० ३२ की अंबिका आकृति में भी मुक्ताहार के उदाहरण द्रष्टव्य है। आर० एस० गुप्ते एवं बी० डी० महाजन, पू० नि०, चित्र सं० १४० । ८२, आदिपुराण ५.६ । ८३. आदिपुराण ९.१५० । ८४. देवीप्रसाद मिश्रा, पू० नि०, पृ० १६० ८५. हरिवंशपुराण ८.१८९-९१; १०वी-१२वीं शती ई० को यक्षी मूर्तियों में गले के विभिन्न आभूषणों के उदाहरण वेखे जा सकते हैं। ८६. कमल गिरि, पू०नि०, पृ० २६१ । ८७. आदिपुराण ५.२५७; ९.४१; १४.१२; १५.१९९; हरिवंशपुराण ११.१४ । ८८, गोकुलचन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, अमृतसर १९६७ पृ० १४७ । ८९. रघुवंश ६.१४, ५३; १६.६० । ९०. आर० एस० गुप्ते एवं बी० डो० महाजन, पू० नि०, चित्र सं० १४०। ९१. आदिपुराण ३.१५७; ९.४१; १५.१९९; उत्तरपुराण ६८.६५२; हरिवंश पुराण ७.८९; पद्मपुराण ३.२, १९०; ८.४१५; ११. ३२८; ८५.१०७, ८८.३१; रघुवंश ७.५० । ९२. रघुवंश ७.५०; इन भुजबन्धों के उदाहरण १०वीं व ११वीं शती ई० की क्रमशः एलोरा और सतना की यक्षी की मूर्तियों में मिलते हैं । ९३. हरिवंशपुराण ८.१८० । ९४. हरिवंशपुराण ८.१८६; ११.११; पद्मपुराण ३.३; आदिपुराण ७.२३५; १४.१२; १५.२३६; उत्तरपुराण ६८.६५२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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