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उपसंहार : २५० महापुराण में २४ तोथंकरों में ऋषभनाथ को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया जिनके बाद पार्श्वनाथ और तत्पश्चात् नेमिनाथ और महावीर का विस्तारपूर्वक उल्लेख हआ है। अन्य तीर्थंकरों की चर्चा संक्षेप में की गयी है । तीर्थंकरों के सन्दर्भ में मुख्यतः पंचकल्याणकों (च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण ) एवं ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और महावीर के सन्दर्भ में उनके जीवन की कुछ अन्य विशिष्ट घटनाओं का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है। ऋषभनाथ के प्रसंग में भरत और बाहुबली के युद्ध, बाहबली की कठिन साधना और कैवल्य प्राप्ति तथा कालान्तर में भरत चक्रवर्ती के संसार त्यागने, नेमिनाथ के सन्दर्भ में कृष्ण की आयुधशाला में नेमि के शौर्य प्रदर्शन तथा पिजड़े में बन्द विभिन्न पशुओं की भोज के निमित्त की जाने वाली हत्या की सूचना के फलस्वरूप नेमिनाथ के अविवाहित रूप में संसार त्यागने एवं पार्श्वनाथ की तपस्या के समय पूर्वजन्म के बैरी कमठ (शंबर) द्वारा उपस्थित उपसर्गों और महावीर की तपश्चर्या के समय संगमदेव, शूलपाणि यक्ष आदि के उपसर्गों से सम्बन्धित उल्लेख कलापरक अध्ययन की दृष्टि से विशेषतः महत्वपूर्ण हैं।
उत्तर भारत में ऋषभनाथ को सर्वाधिक स्वतन्त्र मतियाँ बनों। ऋषभनाथ के बाद क्रमशः पार्श्वनाथ, महावीर और नेमिनाथ की मूर्तियाँ बनीं । किन्तु दक्षिण भारत में पार्श्वनाथ को सर्वाधिक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हुई । दक्षिण भारत में पार्श्वनाथ की तुलना में ऋषभनाथ को मूर्तियाँ नगण्य हैं। ऋषभनाथ से सम्बन्धित स्वतन्त्र आदिपुराण की रचना की पृष्ठभूमि में एलोरा में ऋषभनाथ की केवल पाँच मूर्तियों का मिलना सर्वथा आश्चर्यजनक है। दूसरों ओर पार्श्वनाथ की एलोरा में ३० से अधिक स्वतन्त्र मूर्तियाँ उकेरी गयी हैं जो पार्श्व को विशेष प्रतिष्ठा की सूचक हैं।
एलोरा में पार्श्वनाथ के बाद महावोर की सर्वाधिक मूर्तियां हैं जिनके कुल १२ उदाहरण मिले हैं। पार्श्वनाथ, महावोर और ऋषभनाथ के अतिरिक्त अजितनाथ, सुपार्श्वनाथ और नेमिनाथ की भी एक से तोन मूर्तियां देखी जा सकती हैं। कुभारिया और देलवाड़ा के श्वेताम्बर जैन मन्दिरों (११वों-१३वीं शती ई० ) में भरत और बाहुबली के युद्ध एवं बाहुबली की कठिन तपश्चर्या, नेमिनाथ के कृष्ण की आयुधशाला में शौर्य प्रदर्शन एवं विवाह के पूर्व दीक्षा ग्रहण करने तथा पार्श्वनाथ
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