Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Author(s): Kumud Giri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 275
________________ २६२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन द्वारा विभिन्न प्रकार के नृत्य एवं नाटक करने का उल्लेख एलोरा की गुफा सं० ३० की इन्द्र की दशभुजी नृत्यरत मूर्ति के सन्दर्भ में विशेष महत्त्वपूर्ण है। तीर्थंकरों के जन्मकल्याणक एवं अन्य अवसरों पर इन्द्र की उपस्थिति कुंभारिया एवं देलवाड़ा के मूर्त उदाहरणों में अनेकशः देखी जा सकती है। साथ ही सभी जैन मंदिरों पर ब्राह्मण मंदिरों की भांति गजवाहन वाले इन्द्र को दिक्पाल रूप में वज्र एवं अंकुश सहित निरुपित किया गया है। ___महापुराण में नारद, कामदेव, वामन, लक्ष्मी, सरस्वती, दिक्कुमारियों एवं नागदेवों के भी उल्लेख हैं। एलोरा की जैन गुफाओं में लक्ष्मी और पार्श्वनाथ की मूर्तियों में नागराज धरणेन्द्र के शिल्पांकन के अतिरिक्त इक्षुधनु और पुष्पशर से युक्त कामदेव की भी एक मूर्ति मिली है। आदिपुराण में ऋषभनाथ के पुत्रों-भरत एवं बाहबली के युद्ध और बाहुबली की कठिन तपश्चर्या का भी उल्लेख हुआ है जो एलोरा के जैन गुफाओं की बाहुबलो मूर्तियों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । एलोरा में पार्श्वनाथ के बाद सर्वाधिक स्वतंत्र मूर्तियाँ ( ल० २० ) बाहुबली की ही बनीं जिनमें आदिपुराण के विवरण के अनुरूप बाहुबली को कायोत्सर्ग में तपश्चर्या में तल्लीन और शरीर से लिपटी लता-वल्लरियों एवं समीप हो निश्चिन्त भाव से विचरण करते सर्प एवं मृग आदि वन्य जीव जन्तुओं की आकृतियों सहित दिखाया गया है जो बाहुबली की गहन साधना का सूचक है। आदिपुराण में समवसरण की परिकल्पना के समान ही गज एवं सिंह तथा मयूर-सर्प जैसे परस्पर शत्रुभाव वाले वन्य जीव-जन्तु को बाहुबलो के समीप निश्चिन्त भाव से स्थित बताया गया है। सिंहनी द्वारा महिष के शिशु को अपने शिशु के समान स्तनपान कराने का उल्लेख भी ध्यातव्य है ।" आदिपुराण में बाहुबली के पावों में उनकी बहनों ब्राह्मी एवं सुन्दरो के स्थान पर दो विद्याधरियों का उल्लेख हुआ है जिन्होंने साधनारत बाहुबली के शरीर से लिपटी माधवी को हटाया था। आदिपुराण के उपर्युक्त वर्णन की पृष्ठभूमि में ही एलोरा की बाहुबली मूर्तियों में दोनों पाश्र्यों में दो विद्यारियों को बाहुबली के शरीर से लिपटी लता-वल्लरियों को हटाते हुए दरशाया गया है। आदिपुराण को इस परम्परा का पालन देवगढ़, खजुराहो, विलहरी तथा कई अन्य दिगम्बर स्थलों की १०वीं से १२वीं शती ई० की बाहुबली मूर्तियों में भी हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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