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उपसंहार : २६१
पउमचरिय एवं हरिवंशपुराण जैसे पूर्ववर्ती ग्रन्थों के समान ही उत्तरपुराण में भी विद्यादेवियों के अनेक उल्लेख मिलते हैं । उत्तरपुराण में कई अलग-अलग प्रसंगों में लगभग ५० विद्यादेवियों का नामोल्लेख हुआ है जिनमें अधिकांश राम, लक्ष्मण, रावण, सुग्रीव व हनुमान द्वारा सिद्धियाँ प्राप्त हैं । ल० १०वीं शती ई० ( संहितासार एवं शोभनस्तुति ) में अनेक विद्याओं में से १६ प्रमुख महाविद्याओं को लेकर एक सूची नियत हुई जिसमें उत्तरपुराण में उल्लिखित रोहिणी, प्रज्ञप्ति गरुडवाहिनी ( अप्रतिचक्रा), सिंहवाहिनी ( महामानसी ), महाज्वाला, गौरी, मनोवेगा जैसी महाविद्याओं को सम्मिलित किया गया । दिगम्बर स्थलों पर खजुराहो के आदिनाथ जैन मंदिर के एकमात्र अपवाद के अतिरिक्त महाविद्याओं की मूर्तियाँ नहीं बनीं जबकि गुजरात व राजस्थान के श्वेताम्बर स्थलों पर इन महाविद्याओं का अंकन सर्वाधिक लोकप्रिय था जिसके सामूहिक अंकन के कम से कम चार उदाहरण क्रमशः कुंभारिया के शांतिनाथ मंदिर एवं देलवाड़ा स्थित विमलवसही ( दो उदाहरण रं मण्डप एवं देवकुलिका वितान ) और लूणवसही ( रंगमण्डप ) से मिले हैं। एलोरा में महाविद्या की कोई मूर्ति नही मिली है ।
पूर्वपरम्परा में वर्णित देवताओं के चार वर्गों - भवनवासी, व्यन्तर या वाणमन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक का महापुराण में भी उल्लेख हुआ है। देवताओं के चतुर्वर्ग की सूची से स्पष्ट है कि लोकपूजन से सम्बन्धित यक्ष, नाग तथा गन्धर्व-किन्नर जैसे अर्धदेवों को भी जैन देवकुल में सम्मानजनक स्थान दिया गया। साथ ही खजुराहो, देवगढ़, कुंभारिया, देलवाड़ा और एलोरा जैसे स्थलों पर यक्षों, नागों, गंधर्वों, किन्नरों आदि का बहुतायत से अंकन हुआ है । महापुराण में श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि तथा लक्ष्मी जैसी ब्राह्मण एवं लोकपरम्परा की देवियों को प्रमुख व्यन्तर देवियों के अन्तर्गत रखा गया है और इन्हें जिन माताओं की विभिन्न प्रकार से सेवा करने वाली बताया गया है ।
पूर्व ग्रन्थों की भाँति महापुराण में भी इन्द्र का जिनों के प्रधान सेवक के रूप में उल्लेख हुआ है जो जिनों के पंचकल्याणकों एवं समवसरण की रचना के समय स्वयं उपस्थित होते हैं । ज्ञातव्य है कि जिनों के समवसरण में इन्द्र ही शासनदेवता के रूप में उनके यक्ष और यक्षी की नियुक्ति करते हैं । इन्द्र को देवाधिपति, सहस्राक्ष, गजारूढ़ एवं वज्रधारी निरुपित किया गया है । 3 आदिपुराण में नामोल्लेख किये बिना ३२ इन्द्रों का उल्लेख हुआ है । आदिपुराण में ऋषभदेव के जन्म के अवसर पर इन्द्र
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