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२२४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन था।१२१ जैन भिक्षुणियों द्वारा कंचुक, उकच्छी, वेगच्छिया और संघाटी वस्त्रों को धारण करने का उल्लेख मिलता है । १२२
वस्त्रों में सूती व रेशमी धागों से कढ़ाई की जाती थी तथा विभिन्न प्रकार के रंगों से इन्हें रंगा भी जाता था। आदिपुराण में विशेष अवसर पर विशेष प्रकार की वेश-भषा की महत्ता को दरशाया गया है ।१२३ महापुराण तथा अन्य जैन पुराणों, जैनेतर ग्रन्थों एवं पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर तत्कालीन पुरुषों के प्रमुख वस्त्र के रूप में उत्तरीय, अधोवस्त्र ( धोती ) तथा उष्णीष एवं स्त्रियों के वस्त्र में उत्तरीय, कञ्चुक तथा साड़ी के समान अधोवस्त्र का उल्लेख मिलता है। स्त्री व पुरुषों में प्रचलित घुटनों से नीचे तक की धोती के उदाहरण एलोरा ( गुफा सं०-३२-३३ ) की यक्षी तथा अकोटा एवं जोधपुर से प्राप्त जीवन्तस्वामी महावीर की मूर्ति ( छठीं-नवीं शती ई० ) में देखे जा सकते हैं । १२४ इसी प्रकार लम्बे उत्तरीय के उदाहरण एलोरा की द्वारपाल आकृतियों में देखे जा सकते हैं।१२५ श्वेताम्बर परम्परा में जैन तीर्थंकर भी अधोवस्त्र धारण करते थे जिसका प्रारम्भिकतम उदाहरण (ल० ५वीं-६ठीं शती ई०) अकोटा (गुजरात) की ऋषभनाथ की मूर्ति है ।१२६ ज्ञातव्य है कि दिगम्बर परम्परा की तीर्थंकर मूर्तियाँ निर्वस्त्र होती थीं। स्त्रियों में कुछ स्थलों पर अधोवस्त्र घुटनों से ऊपर तथा कुछ में नीचे पैरों तक धोती के समान मिलता है।१२७ विभिन्न साहित्यिक उद्धरणों से अधोभाग के वस्त्र को कमर पर बाँधकर पहनने का पता चलता है। मेघदूत में शीघ्रता के कारण कमर के वस्त्र के नीचे खिसकने के उल्लेख से भी इसकी पुष्टि होती है ।१२८ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य में स्त्रियों के अवग्रह, पट्ट, अर्घोरुक, चलनिका, बहनिवसिनी और अन्तरनिर्वसनी जैसे नीचे के तथा कञ्चुक, औपकाक्षिकी, वेदकाक्षकी, संघाटी तथा स्कन्दकर्णी जैसे ऊपर के वस्त्रों के उल्लेख हैं । १२९ इनमें अोरुक, चलनिका तथा अन्तरनिर्वसिनी जंघा तक का वस्त्र था और बनिर्वसिनी एड़ी तक पहुँचता हुआ साड़ी जैसा वस्त्र था जो सम्भवतः कमर पर किसी पट्ट से बँधा रहता था। औपकाक्षिकी व वैकाक्षकी कञ्चुक के समान होता था। 30 वस्त्र के विभिन्न प्रकार एवं स्वरूप :
जैन पुराणों में निम्नलिखित प्रकार के वस्त्रों एवं विभिन्न वेशभूषाओं के सन्दर्भ में उनके उपयोग के उल्लेख मिलते हैं।
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