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२.३८ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
जन्म, हर्ष, काम, त्याग, विलास, विवाद तथा परीक्षा आदि अवसरों पर नृत्य करने का उल्लेख है । २८६ जैन पुराणों में नृत्य कला की विशेषताओ एवं उसके विभिन्न स्वरूपों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण विवरण उपलब्ध हैं । २७ आदिपुराण में नृत्य के समय विभिन्न वेश धारण करने और कटाक्ष, कपोलों, पैरों, हाथों, मुख, नेत्रों, अंगराज, नाभि, कटिप्रदेश तथा मेखलाओं द्वारा भाव का प्रदर्शन करने का उल्लेख हुआ है । नृत्य में रस, भाव, अनुभाव एवं चेष्टाओं का होना परम आवश्यक है । २८८ आदिपुराण में नृत्य की विभिन्न मुद्राओं के सन्दर्भ में मन्द मन्द मुस्कान से देखते हुए भौंहों के संचालन, स्तन कम्पन, मन्थर गति, स्थूल नितम्ब के विभिन्न मुद्राओं में प्रदर्शन, भुजाओं के संचालन, कटि हिलाने, शरीर के नाभि आदि अवयवों के प्रदर्शन, पृथ्वी तल छोड़ कर नृत्य करने, नृत्य की विभिन्न मुद्राओं के शीघ्रता से परिवर्तन, नृत्य द्वारा केश - पाश प्रदर्शन, स्पन्दन, गायन के साथ, कटाक्ष एवं हावभाव के साथ, पुष्प एवं स्वर्ण के घटों को सिर पर रखकर, नेत्रों द्वारा विभिन्न रूप धारण करके, एक भुजा पर नर्तकी तथा दूसरे पर नर्तक को नृत्य कराते हुए स्वयं नृत्य करने और इन्द्र के ताण्डव नृत्य के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं । २८९ नृत्य के साथ वीणा, पुष्कर, बांसुरी, झांझ, नगाड़े, दुन्दुभि, झल्लरी, काहल, ताल, मृदंग, पणव, दर्दुर तथा विपंची आदि वाद्यों का उल्लेख मिलता है । २९० एलोरा की जैन गुफा सं० ३० में शिव के नटेश मूर्तियों के समान कुछ नृत्यरत मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। एक उदाहरण में दो पुरुष आकृतियों को शिव आकृति के समान एक पैर उठाकर अत्यन्त गतिशील रूप में नृत्यरत दिखाया गया है ।
जैन महापुराण में नृत्य के निम्नलिखित प्रकार एवं स्वरूपों का उल्लेख मिलता है। ये नृत्य मुख्यतः विभिन्न अप्सराओं ( नीलांजना ) एवं इन्द्र द्वारा किये गये । जैन पुराणों में शिव के स्थान पर इन्द्र द्वारा विभिन्न नृत्यों का किया जाना ध्यातव्य है । साथ ही कई नृत्य लोक शैली के नृत्य भी प्रतीत होते हैं ।
(१) आनन्द नृत्य २९१ : इन्द्र द्वारा आनन्द नृत्य करने तथा श्रेष्ठ गन्धर्वो द्वारा विभिन्न प्रकार के वाद्य ( झांझ एवं बांसुरी आदि ) बजाये जाने का उल्लेख आदिपुराण में हुआ है । इस नृत्य में अनेक नर्तकियाँ भी भाग लेती थीं तथा यह नृत्य शृंगार रस से परिपूर्ण और सरस होता था। समाज में इस नृत्य का विशेष प्रचलन था ।
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