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सांस्कृतिक जीवन : २३९ (२) अलातचक्र नत्य १२ : इस नृत्य की विशेषता यह थी कि इसमें तेजी के साथ फिरकी लेते हुए नृत्य करते थे तथा विभिन्न मुद्राओं के द्वारा शरीर के अंग-प्रत्यंग का संचालन करते थे ।
(३) इन्द्रजाल नृत्य२९३ : जिस नृत्य में क्षण में व्याप्त, क्षण में लघु, क्षण में प्रकट, क्षण में अदृश्य, क्षण में दूर, क्षण में निकट, कभी आकाश में तो कभी पृथ्वी पर आना प्रदर्शित होता हे उसे इन्द्रजाल नृत्य के नाम से अभिहित किया गया है। इसमें नर्तक के साथ नर्तकी भी भाग लेती थी।
(४) कटाक्ष नत्य२९४ : इस नत्य में नर्तकियाँ पुरुष की भुजाओं पर अपने कटाक्षों का विक्षेपण करती हुई नृत्य करतो थीं। इसी प्रकार एक अन्य नृत्य में जो 'सूची नृत्य' कहलाता था नर्तकी पुरुष की अंगुलियों पर नृत्य करती थी। . (५) चक्र नृत्य२९५ : इस नृत्य में नर्तक, नर्तकियों के साथ चक्र की भाँति तेजी से चक्कर लगाते हुए नृत्य करता था।
(६) ताण्डव नत्य२९६ : महापुराण के अनुसार पाद, कटि, कण्ठ तथा हाथ को तालों, कलाओं, वर्णों तथा लयों पर संचालित करना ही ताण्डव नृत्य है । आदिपुराण में इन्द्र द्वारा इस नृत्य को किये जाने का उल्लेख हुआ है जबकि ब्राह्मण परम्परा में शिव द्वारा इस नृत्य को करने का सन्दर्भ प्राप्त होता है।
(७) निष्क्रमण नृत्य२९७ : इसमें नर्तकी विभिन्न रूप में निष्क्रमण दिखलाती हुई नृत्य करती थी।
(८) पुतली नत्य२९८ : इस नृत्य में नर्तक की भुजाओं पर नर्तकियाँ इस प्रकार नृत्य करती थीं मानो किसी यन्त्र की पट्टी पर पुतलियाँ यन्त्रवत नृत्व कर रही हों। .. (९) बहुरूपिणी नृत्य२९९ : इस नृत्य में नृत्यरत नर्तकियों के गले में पड़े हुए मोतियों के हार पर उनके ही प्रतिबिम्ब इस प्रकार प्रतीत होते थे जैसे इन्द्र की बहुरूपिणी विद्या ही नृत्य कर रही है।
(१०) बांस नत्य३०० : इस नृत्य में नर्तकी, नर्तक की अंगुलियों के अग्रभाग पर अपनी नाभि रखकर इस प्रकार फिरकी लगाती हुई नृत्य करती थी जैसे किसी बाँस के ऊपर नृत्य किया जा रहा हो। - (११) लास्य नृत्य30१ : सुकुमार प्रयोगों से परिपूर्ण होने के कारण यह नृत्य लास्य नृत्य कहलाता था। श्रावण माह में दोला क्रीड़ा के समय कामिनियों द्वारा यह नृत्य किया जाता था।30२
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