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अन्य देवी-देवता : २०५
५. आलय : आलय शब्द भी गह से ही सम्बन्धित है।।
६. स्नानागार : आदिपुराण में राजप्रासाद के अन्दर जीमूत नामक एक विशाल स्नानगृह का उल्लेख है।११७ यह लगभग १०० फीट लम्बा व ८० फीट चौड़ा होता था तथा इसका निर्माण राजमहल में पृथक ही किया जाता था। इसके मध्य में धारागृह १८ तथा वापिका होती थी।११९
७. हर्म्य : राजा या धनिक वर्गों के लिये निर्मित भव्य भवनों को हर्म्य कहा गया है । यह सात मंजिला होता था । १२०
८. प्रासाद : सामान्यतया 'प्रासाद' शब्द राजाओं के भवनों के लिये प्रयुक्त होता है परन्तु वास्तुशास्त्रीय परिभाषा में इसका प्रयोग देव मंदिर के लिये हुआ है। प्रसन्न कुमार आचार्य ने 'इन्साइक्लोपीडिया ऑव हिन्दू आर्कीटेक्चर' (पृ० ३६४ ) में प्रासाद शब्द का तात्पर्य आवास भवन एवं देव मन्दिर बताया है ।१२१ आदिपुराण में सब ऋतुओं में सुख देने वाले 'वैजयन्त', सब दिशाओं को देखने के लिये 'गिरिकूटक' और वर्षा ऋतु में निवास करने के लिये 'गृहकूटक' नामक राजमहलों का उल्लेख है । १२२ उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि विभिन्न ऋतुओं व दिशाओं के अवलोकन आदि का ध्यान रखकर राज-प्रासादों का निर्माण किया जाता था । इन भवनों को घेरे हुए कोट और रत्नजटित तोरणों से युक्त गोपुर होते थे । भवन के अन्दर ही नृत्यशाला, भण्डारगृह व स्नानगृह होते थे ।१२३
९, शाला या शालभवन : जैन पुराणों में यज्ञशाला, चन्द्रशाला, प्रेक्षकशाला, आतोद्यशाला ( वादनशाला), नाट्यशाला, नृत्यशाला एवं चतुःशाला आदि का उल्लेख है ।१२४ इनका पृथक्-पृथक् अस्तित्व होता था।
१०. कूटागार : जिन भवनों का निर्माण अनेक शिखरों से युक्त होता था, उन्हें कूटागार नाम से अभिहित किया गया है। राजाओं व धनिक वर्गों के लिये ही प्रायः इनका निर्माण होता था। कूटागार में ऊँची-ऊँचो सोढ़ियों का प्रयोग होता था । १२५
११. पुष्करावर्त २६ : यह एक विशेष राजमहल था जिसका निर्माण ईटों द्वारा होता था।
१२. भण्डार-गह १२७ : विभिन्न सामग्री के संचयनार्थ एक विशिष्ट प्रकार के गृह का पृथक निर्माण किया जाता था जिसे भण्डार-गृह नाम से जाना जाता था।
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