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अन्य देवी-देवता : २०१ धनुष चौड़ी, उतनी ही लम्बी तथा चौड़ाई से कुछ अधिक ऊँची बताया गया है।“ गन्धकुटी के मध्य में स्थित सिंहासन सुवर्ण निर्मित वअनेक प्रकार के रत्नों से जटित होता था।
इस प्रकार वीथिका, महावीथिका, कोट, धूलिशाल, नाट्यशाला, ध्वजाभूमि, चैत्यवृक्ष व स्तूप, श्रीमण्डप व गन्धकुटी से युक्त समवसरण सभा न केवल जैन परम्परा में धार्मिक महत्व का है बल्कि जैन स्थापत्य का भी एक उत्कृष्ट नमूना है। इन समवसरणों के मूर्त उदाहरण केवल ११वीं से १३वीं शती ई० के मध्य के कुम्भारिया ( महावीर व शान्तिनाथ मंदिर ), विमलवसही एवं कैम्बे आदि श्वेताम्बर स्थलों पर ही मिले हैं।। ___ समवसरणों के उत्कीर्णन में ऊपर वर्णित विशेषताएँ ही दरशाही गयी हैं। सभी समवसरण तीन वृत्ताकार प्राचीरों वाले भवन के रूप में निर्मित हैं। इनके ऊपरी भाग अधिकांशतः मंदिर के शिखर के रूप में प्रदर्शित हैं। समवसरणों में पद्मासन में बैठो जिनों की चार मतियाँ भी उत्कोर्ण रहती हैं। लांछनों के अभाव समवसरणों की जिन मूर्तियों की पहचान सम्भव नहीं है। सामान्य प्रातिहार्यों से युक्त जिन मूर्तियों में कभी-कभी यक्ष-यक्षी भी निरुपित रहते हैं । प्रत्येक प्राचीर में चार प्रवेशद्वार और द्वारपालों की मूर्तियाँ होती हैं । भित्तियों पर देवताओं, साधुओं, मनुष्यों एवं पशुओं की आकृतियाँ बनी रहती हैं। दूसरे और तीसरे प्राचीरों की भित्तियों पर सिंह-गज, सिंह-मृग, सिंह-वृषभ, मयूर-सर्प और नकुल-सर्प जैसे परस्पर शत्रुभाव वाले पशुओं के युगल अंकित होते हैं। __ ग्यारहवीं शती ई० का एक खण्डित समवसरण कुम्भारिया के महावीर मंदिर की देवकुलिका में है। इस समवसरण के प्रत्येक प्राचीर के प्रवेशद्वारों पर दण्ड और फलधारी द्विभुज द्वारपालों की मूर्तियाँ हैं । ग्यारहवीं शती ई० का एक उदाहरण मारवाड़ के जैन मंदिर से मिला है
और सम्प्रति सूरत के जैन देवालय में प्रतिष्ठित है। विमलवसही की देवकूलिका में ल० बारहवीं शती ई० का एक समवसरण है। इसमें उपर की ओर चार ध्यानस्थ जिन मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। सभी जिनों के साथ यक्ष-यक्षी निरुपित हैं। बारहवीं शती ई० का एक अन्य समवसरण कैम्बे से मिला है । कुम्भारिया के शान्तिनाथ मंदिर को देवकुलिका में १२०९ ई० का एक समवसरण है। चार ध्यानस्थ जिन मूर्तियों के अतिरिक्त इसमें २४ छोटी जिन मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण हैं। पाँच और सात सर्पफणों के छत्रों से युक्त दो जिन मूर्तियाँ सुपार्श्व और पार्श्व को हैं ।
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