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यक्ष-यक्षी एवं विद्यादेवी : १५१ महापुराण में २४ यक्ष-यक्षी युगलों के नामों या लाक्षणिक विशेषताओं का कोई उल्लेख नहीं हुआ है। केवल कुछ स्थानों पर तीर्थंकरों के समीप चामर डुलाते एवं बलभद्र व नारायण आदि के रक्षक के रूप में यक्षों का उल्लेख मिलता है। नवीं-दसवीं शती ई० अर्थात् जैन महापुराण के रचनाकाल के समय तक २४ तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षी की सूची श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में नियत हो चुकी थी। दिगम्बर सूची विस्तार में तिलोयपत्ति में वर्णित है । यक्ष-यक्षी की सूची के साथ ही चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावती जैसी यक्षियों एवं कुबेर या सर्वानुभूति और धरणेन्द्र यक्षों की लाक्षणिक विशेषताएँ भी निर्धारित हो चुको थीं। तद्नुरूप मथुरा, देवगढ़, खजुराहो, अकोटा, धांक, ओसियाँ जैसे स्थलों पर उपयुक्त यक्ष और यक्षियों को मूर्त अभिव्यक्ति भी दी गयी। ज्ञातव्य है कि यक्षों की अपेक्षा यक्षियों का अंकन और उनकी पूजा जैन परम्परा में अधिक लोकप्रिय थी । २४ यक्षियों के सामूहिक अंकन का प्रारम्भिकतम उदाहरण देवगढ़ ( ललितपुर, उ० प्र०) के शान्तिनाथ मन्दिर ( मन्दिर सं० १२-८६२ ई० ) की भित्ति पर देखा जा सकता है। यहाँ केवल चक्रेश्वरी, अंबिका और पद्मावती ही स्वतन्त्र लक्षणों वालो निरूपित हैं जबकि अन्य यक्षियों के निरूपण में स्पष्टतः पूर्ववर्ती विद्यादेवियों के लक्षणों का प्रभाव दिखायी देता है ।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में जैन महापुराण में यक्ष-यक्षी के सन्दर्भो का अभाव कुछ विचित्र सा प्रतीत होता है, विशेषतः एलोरा की समकालीन जैन गुफाओं में चक्रेश्वरी, अंबिका, पद्मावती, यक्षियों तथा कुबेर यक्ष की स्वतन्त्र एवं जिन-संयुक्त मूर्तियों की उपलब्धता के सन्दर्भ में।
जैन शिल्प में ल० दसवीं शती ई० से जिन मूर्ति के साथ पारम्परिक एवं स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी युगलों का निरूपण आरंभ हो गया। इसके उदाहरण मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में देवगढ़, मथुरा, राज्य संग्रहालय, लखनऊ, ग्यारसपुर, खजुराहो एवं कुछ अन्य स्थलों से प्राप्त होते हैं। ल० ९वीं शती ई० के अन्त तक सर्वानुभूति यक्ष एवं अंबिका यक्षी का अंकन ही सर्वाधिक लोकप्रिय था जिन्हें सभी तीर्थंकरों के साथ रूपायित किया गया है। 3 __यक्ष एवं यक्षी की आकृतियाँ जिन मूर्तियों के सिंहासन या सामान्य पीठिका पर क्रमशः दाहिने और बायें छोर पर अंकित होती हैं । सामान्यतया ललितमुद्रा में किन्तु कभी-कभी इन्हें ध्यानमुद्रा में आसीन और
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