________________
अन्य देवी-देवता : १७३ है । उनकी आयु नारायणों की आयु के समान बतायी गयी है । उन्हें कलह से प्रीति व धर्म से स्नेह रखने वाला, हिंसा से आनन्दित होने वाला तथा जिनेन्द्र का अनुगामी बताया गया है । ६४ हरिवंशपुराण में इन्हें श्वेतवर्ण व आकर्षक व्यक्तित्व का तथा कौपीन, यज्ञोपवीत एवं जटाधारण किये हुए निरूपित किया गया है। इन्हें काम, क्रोध, मद, मोह तथा लोभ आदि अन्तरंग शत्रुओं से रहित भी बताया गया है । ६५ उत्तरपुराण में भी जटाजूटधारी नारद को अक्षसूत्र ( जपमाला ), स्वर्ण निर्मित यज्ञोपवीत एवं कमण्डलु धारण किये हुए निरूपित किया गया है । उत्तरपुराण में ही एक अन्य स्थल पर इन्हें यज्ञोपवीत एवं जटाधारी तथा कमण्डलु के साथ ही छत्र धारण किये हुए एवं नैष्ठिक ब्रह्मचारी के स्वरूप वाला बताया गया है । ६७ नारद के ये लक्षण विष्णु के वामन स्वरूप से सम्बन्धित जान पड़ते हैं । हरिवंशपुराण में नारद को अनेक विद्याओं का ज्ञाता, शास्त्रों में निपुण, कामजित होते हुए भी कामी मनुष्यों का प्रिय हास्यरूप, लोभरहित, युद्ध व कलहप्रिय, अधिक बोलने वाला तथा लोक में निरन्तर परिभ्रमण करने वाला बताया गया है । पुष्पदन्तकृत महापुराण में मणिमय कमण्डलु, दण्ड, मणिमय अक्षसूत्र एवं यज्ञोपवीतधारी नारद को पादुका पहने वर्णित किया गया है । त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र में नारद का उल्लेख तिलोत्तमा, उर्वशी व रम्भा आदि अप्सराओं और तुम्बरु के साथ किया गया है । ७० जटाजूट, कुंभोदर, भयंकर दर्शन वाले नारद हाथों में छत्र एवं दण्ड लिये और सिंह चर्म धारण किये हुए निरूपित हैं । " किसी भी जैन मन्दिर में नारद की मूर्ति का उदाहरण नहीं मिलता । ७२
1
कुबेर :
ब्राह्मण परम्परा के प्रभाव के फलस्वरूप कुबेर को जैनधर्म में भी भोगोपभोग को वस्तुओं का स्वामी बताया गया है । इनकी नियुक्ति इन्द्र द्वारा नगर की रचना करने व जिनेन्द्र देव की विभिन्न प्रकार से सेवा करने के लिये की जाती थी । कुबेर का उल्लेख चार लोकपालों के अन्तर्गत उत्तर दिशा के स्वामी के रूप में भी आता है । ७४ ल० आठवीं शती ई० से सभी क्षेत्रों के जैन मन्दिरों पर उत्तरी कोण पर ब्राह्मण मंदिरों के समान दिक्पाल के रूप में कुबेर का नियमित अंकन हुआ है। ओसियां, खजुराहो, देवगढ़, कुंभारिया, देलवाड़ा जैसे स्थलों पर सामान्यतः बृहदजठर कुबेर को गज-वाहन या निधिपात्र के साथ फल, पद्म, धन का 'ला, अंकुश आदि से युक्त दिखाया गया है । उत्तरपुराण में कुबेर की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org