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१७६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
लक्ष्मी :
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जैन देवकुल में लक्ष्मी की अवधारणा प्राचीन है । सर्वप्रथम कल्पसू में जिनों की माताओं द्वारा देखे गये शुभ स्वप्नों के सन्दर्भ में श्री लक्ष्मी का उल्लेख हुआ है । शीर्ष भाग में दो गजों से अभिषिक्त लक्ष्मी को पद्मासीन व दोनों करों में पद्म धारण किये निरूपित किया गया है । ७ भगवतीसूत्र ( पाँचवीं शती ई० ) में भी एक स्थल पर लक्ष्मी की मूर्ति का उल्लेख है।" परवर्ती जैन ग्रन्थों में भी लक्ष्मी को सागरपुत्री ९, विष्णु की सहचरी तथा सौन्दर्य व समृद्धि की देवी के रूप में निरूपित किया गया है । पद्मा, रमा, हरिप्रिया, पद्मवासा आदि नामों से अभिहित देवी पद्मासना एवं दो गजों से अभिषिक्त हैं । पुष्पदन्तकृत महापुराण एवं उत्तरपुराण में जिनमाताओं द्वारा देखे गये १६ शुभस्वप्नों के सन्दर्भ में भी लक्ष्मी का उल्लेख आया है इसमें इन्हें नवकमलों के सरोवरों की स्वामिनी व गजों द्वारा अभिषिक्त उल्लखित किया गया है । 3 जैन शिल्प में लक्ष्मी का मूर्त अंकन ल० ९वीं शती ई० के बाद ही लोकप्रिय हुआ जिसके उदाहरण खजुराहो, देवगढ़, ओसियां, कुंभारिया एवं देलवाड़ा आदि स्थलों से प्राप्त होते हैं । १४
उपर्युक्त सभी स्थलों पर चर्तुभुजा लक्ष्मी दो गजों द्वारा अभिषिक्त गजलक्ष्मी या अभिषेक लक्ष्मी के रूप में निरूपित हैं । पद्मासीन देवी के दो ऊर्ध्व करों में पद्म हैं तथा अधः करों में वरद या अभयमुद्रा और जलपात्र या फल दिखाया गया है । कुंभारिया एवं देलवाड़ा के जैन मन्दिरों के वितानों पर उत्कीर्ण विभिन्न तीर्थंकरों के जीवन दृश्यों एवं खजुराहो, देवगढ़ जैसे दिगम्बर स्थलों पर प्रवेशद्वार के ऊपरी भाग में मांगलिक स्वप्नों के अन्तर्गत गजलक्ष्मी को उपर्युक्त लक्षणों वाला दर्शाया गया है. ( चित्र २०-२१ ) । एलोरा की जैन गुफा सं० ३० और ३२ में क्रमशः तीन और एक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । ध्यानमुद्रा में पद्म पर आसीन गुफा सं० ३० की तीन मूर्तियों में से दो में चतुर्भुजा देवी के केवल दो हाथों में पद्म स्पष्ट हैं। तीसरी मूर्ति में द्विभुजा देवी पद्म से युक्त और दो गजों द्वारा अभिषिक्त दिखायी गयी हैं । गुफा सं० ३२ की चौथी मूर्ति में चतुर्भुजा देवी पूर्ववत् ध्यानमुद्रा में पद्म पर आसीन और दो गजों द्वारा: अभिषिक्त दिखायी गयी हैं। देवी के तीन अवशिष्ट करों में वरदमुद्रा, पद्म और पाश स्पष्ट हैं ।
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