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१५० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
( दिगम्बर ) में भी २४ यक्ष-यक्षी की लाक्षणिक विशेषताओं का उल्लेख है । ३६ १२वीं शती ई० के बाद कई अन्य ग्रन्थों में २४ यक्ष-यक्षी युगलों
प्रतिमानिरूपण से सम्बन्धित उल्लेख मिलते हैं, जिनमें पद्मानन्दमहाकाव्य ( या चतुर्विंशति जिनचरित्र, श्वेताम्बर, १२४१ ई० ), मन्त्राधिराजकल्प ( श्वेताम्बर, १२वीं - १३वीं शती ई०), आचारदिनकर ( श्वे - ताम्बर, १४११ ई० ), प्रतिष्ठासारोद्धार ( दिगम्बर, १२२८ ई० ) एवं प्रतिष्ठातिलकम् ( नेमिचन्द्र संहिता या अर्हत् प्रतिष्ठासारसंग्रह, दिगम्बर, १५४३ ई० ) प्रमुख हैं । ३७
कुछ जैनेतर ग्रन्थों जैसे - अपराजितपृच्छा ( दिगम्बर परम्परा पर आधारित, ल० १३वीं शती ई० ) एवं रूपमण्डन व देवतामूर्तिप्रकरण, ( श्वेताम्बर परम्परा पर आधारित, ल० १५वीं शती ई० ) में भी २४ यक्ष एवं यक्षियों की लाक्षणिक विशेषताओं का निरूपण मिलता है | 3 उपर्युक्त ग्रन्थों के आधार पर २४ यक्ष यक्षी की सूची इस प्रकार है ।
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२४ यक्ष – गोमुख, महायज्ञ, त्रिमुख, यक्षेश्वर ( या ईश्वर ),38 तुम्बरु ( या तुम्बर ), कुसुम ( या पुष्प ), मातंग ( या वरनन्दि), विजय ( श्याम दिगम्बर), अर्जित, ब्रह्म, ईश्वर, कुमार, षण्मुख ( चतुर्मुखदिगम्बर ), पाताल, किन्नर, गरुड, गन्धर्व, यक्षेन्द्र ( रविन्द्र - दिगम्बर ), कुबेर ( या यक्षेश ), वरुण, भृकुटि, ( धरण - दिगम्बर ) एवं मातंग |
गोमेध, पार्श्व ४०
२४ यक्षियां - चक्रेश्वरी ( या अप्रतिचक्रा ), अजिता ( रोहिणी - दिगम्बर), दुरितारी ( प्रज्ञप्ति - दिगम्बर ), कालिका ४१ ( वज्रशृंखलादिगम्बर ), महाकाली ( पुरुषदत्ता दिगम्बर), अच्युता ( मनोवेगादिगम्बर ), शान्ता (काली - दिगम्बर ), भृकुटि ( ज्वालामालिनी - दिगम्बर), सुतारा ( महाकाली - दिगम्बर), अशोका ( मानवी - दिगम्बर), मानवी ( गौरी - दिगम्बर ), चण्डा ( गान्धारी - दिगम्बर ), विदिता ( वैरोटीदिगम्बर), अंकुश (अनन्तमती - दिगम्बर ), कन्दर्पा ( मानसी ), निर्वाणी ( महामानसी - दिगम्बर ), बला ( जया - दिगम्बर ), धारणी ( तारावतीदिगम्बर ), वैरोट्या ( अपराजिता - दिगम्बर), नरदत्ता ( बहुरुपिणीदिगम्बर ), गान्धारी ( चामुण्डा - दिगम्बर ), अंबिका ( या आम्रा या कुष्माण्डिनी), पद्मावती एवं सिद्धायिका ( या सिद्धायिनी ) २४ यक्षियाँ हैं । ४२
यह सर्वथा आश्चर्य का विषय है कि जिनसेन व गुणभद्रकृत
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