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शलाका पुरुष : १३३
(ल० ८वीं शती ई०), गुणभद्रकृत उत्तरपुराण, पुष्पदन्तकृत महापुराण (९६५ ई० ) एवं हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र मुख्य हैं ।७२
रामायण के तीन प्रमुख पात्रों राम, लक्ष्मण और रावण ( दशानन) को जैन देवमण्डल में लगभग ५वीं शती ई० में ६३ शलाकापुरुषों की सूची में सम्मिलित किया गया। पउमचरिय में राम की तुलना में रावण को अधिक जिनभक्त के रूप में निरुपित किया गया ।७3 इस ग्रन्थ में राम के साथ हल व मुसल और लक्ष्मण के साथ चक्र एवं गदा का उल्लेख मिलता है।७४ कई स्थलों पर राम को पद्म, हलायुध और लक्ष्मण को नारायण, चक्रधर तथा चक्रपाणि नामों से भी अभिहित किया गया है।७५
पउमचरिय एवं परवर्ती ग्रन्थों में रामकथा के अनेकशः उल्लेख के बाद भी जैन स्थलों पर राम का मूर्त अंकन लोकप्रिय नहीं हो सका। इनके मूर्त अंकन का उदाहरण केवल खजुराहो के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर ( ल० ९५०-७० ई० ) पर मिला है।
उत्तरपुराण में ब्राह्मण धर्म के राम, लक्ष्मण और रावण की कथा का जो विवरण मिलता है वह कुछ स्थलों पर रामायण की कथा से सर्वथा भिन्न है जिसे यथास्थान स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
राम और लक्ष्मण का जन्म वाराणसी नगर के राजा दशरथ की क्रमशः सुबाला व कैकेयी रानी के गर्भ से हुआ था ।७७ लक्ष्मण के शरीर पर चक्र का चिह्न था। ये दोनों भाई अपरिमित शक्ति वाले थे। राम का वर्ण हंस के पंख के समान श्वेत और लक्ष्मण का नील कान्तिवाला था।
राम और लक्ष्मण के कुमारकाल का जब काफी समय व्यतीत हो चुका तो दशरथ वंश परम्परा अनुसार अयोध्या में आकर रहने लगे। इसी समय मिथिला के राजा एवं सीता के पिता जनक एक ऐसा यज्ञ करने जा रहे थे जिसमें प्रतिपक्षियों, विशेष रूप से रावण, द्वारा विघ्न डालने का भय था ( उत्तरपुराण में सीता को एक स्थल पर रावण की पुत्री उल्लिखित किया गया है, ६८.३४८-३५३)। मन्त्रियों से परामर्श करने पर महाराज जनक को रामचन्द्र के पराक्रम का पता चला। उन्होंने दशरथ के पास बहुमूल्य भेंट के साथ अपने दूत को भेजकर यज्ञ की रक्षा के लिये राम और लक्ष्मण को आमन्त्रित किया। साथ ही बदले में सीता को देने का भी प्रस्ताव रखा।९
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