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१३२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन , चक्र से उसका वध कर दिया । आयु के अन्त में अत्यन्त आसक्ति के
कारण पुण्डरीक ने सातवें नरक को और बलभद्र नन्दिषेण ने उनके वियोग में संसार से विरक्त हो और संयम धारण कर मोक्ष प्राप्त किया ।६७ ७. नन्दिमित्र, दत्त और बलीन्द्र :
सातवें बलभद्र, नारायण व प्रतिनारायण का जन्म १९वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के तीर्थ में हुआ था। बलभद्र 'नन्दिमित्र' और नारायण 'दत्त' वाराणसी के इक्ष्वाकुवंशी राजा अग्निशिख की अपराजिता और केशवती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। चन्द्रमा और इन्द्रनील मणि के समान वर्ण वाले ये दोनों ही तीन खण्ड पृथ्वी के स्वामी थे।
इसी समय इनका शत्रु प्रतिनारायण ‘बलीन्द्र' हुआ जो विजया पर्वत पर स्थित मन्दरपुर नामक नगर का विद्याधर राजा था। यह पूर्व जन्म में भी इनका वात्रु था। एक दिन युद्ध करने की इच्छा से अहंकारवश इसने अपने एक दूत को इनके पास भेज कर प्रसिद्ध गन्धगज मँगवाया। कुपित हो बदले में नन्दिमित्र और दत्त ने अपने लिए उसकी कन्या माँगी । फलस्वरूप दोनों के बीच युद्ध हुआ और अन्त में बलीन्द्र द्वारा चलाये गये चक्र से ही नारायण दत्त ने उसका वध कर दिया। चिरकाल तक राज्यलक्ष्मी का सुख भोगने के बाद मृत्यु के उपरान्त दत्त ने सातवें नरक को और भाई के वियोग से विरक्त नन्दिमित्र ने केवली होकर मोक्ष प्राप्त किया।६९ । ८. राम ( पद्म ), लक्ष्मण ( नारायण ) और रावण : ____ आठवें बलभद्र 'राम', नारायण 'लक्ष्मण' तथा प्रतिनारायण 'रावण' बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के समकालीन थे।७० प्रारम्भ से ही जन-भावना के प्रति सम्मान की वृत्ति रहने के कारण जैन आचार्यों ने हिन्दू धर्म के देवताओं को जैन देवकुल में औदार्यपूर्वक प्रवेश देकर महनीय कार्य किया है । राम जनमानस से जुड़े सर्वाधिक लोकप्रिय देवता रहे हैं जिनका विस्तृत उल्लेख वाल्मीकि के रामायण में मिलता है। जैन परम्परा में राम का प्रारम्भिक और विस्तृत उल्लेख नागेन्दु कुल के ( श्वेताम्बर ) विमलसूरिकृत पउमचरिय ( ४७३ ई० ) में मिलता है ।७१ पउमचरिय के पश्चात् जैन परम्परा में राम कथा पर आधारित जिन स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना की गयी उनमें संघदास कृत वसुदेवहिण्डी (६०९ ई०), रविषेणकृत पद्मपुराण (६७८ ई० ), शीलांककृत चउप्पन्नमहापुरिसचरियं
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