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.६२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
साल
२३. पार्श्वनाथ धातकी ( श्वे०), धव अथवा धातकी (दि०) २४. महावीर
कुछ स्थलों पर इनके चैत्यवृक्षों की नामावली में भिन्नता भी मिलती है,३७ जो इस प्रकार हैतीर्थंकर
चैत्यवृक्ष १. ऋषभनाथ
न्यग्रोध ( श्वे०), वट ( दि०) २. अजितनाथ
शक्तिपर्ण ( श्वे०), सप्तपर्ण ( दि०) ३. अभिनन्दननाथ पियम ( श्वे०) ४. पद्मप्रभ
छत्राभ ( श्वे०) ५. शीतलनाथ
पिलक्खु ( श्वे०), प्लक्ष (दि०) ६. अनन्तनाथ
अश्वत्थ ( श्वे०), पीपल (दि०) ..७. कुन्थुनाथ
पिलक्खु .८. महावीर
साल ( श्वे० ), शाल (दि०)
विभिन्न तीर्थंकरों के अष्टमहाप्रातिहार्यों की अवधारणा का पूर्ण विकास गुप्तकाल के अन्त अथवा उत्तरगुप्तकाल में हुआ। पउमचरिय ( ल० ४७३ शती ई० ) में अजितनाथ व महावीर के सन्दर्भ में विभिन्न अतिशयों तथा अष्टप्रातिहार्यों का उल्लेख हुआ है।३९ दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ हरिवंशपुराण में नेमिनाथ के अष्टप्रातिहार्यों में सुरपुष्प.वृष्टि, देवदुन्दुभि, अशोकवृक्ष, छत्रत्रय, चामरधारी सेवक, भामण्डल, सिंहासन तथा भाषा का उल्लेख मिलता है।४० आदिपुराण४१ में ऋषभदेव के समवसरण के सन्दर्भ में इन्हीं अष्टप्रातिहार्यों का उल्लेख हुआ है। केवल भाषा के स्थान पर दिव्यध्वनि बताया गया है । एलोरा की तीर्थंकर मूर्तियों में धर्मचक्र के अतिरिक्त अष्टप्रातिहार्यों के अन्तर्गत त्रिछत्र, देवदुन्दुभि, चामरधारी सेवक, अलंकृत सिंहासन, मालाधारी गन्धर्व, प्रभामण्डल एवं अशोकवृक्ष का ही अंकन हुआ है। आगे चलकर श्वेताम्बर परम्परा के निर्वाणकलिका४२ ( पादलिप्त
सूरिकृत-ल० ११वीं शती ई० ) एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र ( हेमचन्द्र- सूरिकृत, १२वीं शती ई० का उत्तरार्ध) तथा दिगम्बर परम्परा के
प्रतिष्ठासारसंग्रह (वसुनन्दिकृत-ल० १२वीं शती ई०) एवं प्रतिष्ठा- सारोद्धार४ (आशाधरकृत-१३वीं शती ई०) में अष्टप्रातिहार्यों के
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